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उन्नीसवी शताब्दी में जापान में एक घटनाक्रम था जिस से सन् 1868 में सम्राट का शासन फिर से बहाल हुआ। इस से जापान के राजनैतिक और सामाजिक वातावरण में बहुत महत्वपूर्ण बदलाव आये जिनसे जापान तेज़ी से आर्थिक, औद्योगिक और सैन्य विकास की ओर बढ़ने लगा।[1] इस क्रान्ति ने जापान के एदो काल का अंत किया और मेइजी काल को आरम्भ किया। इस पुनर्स्थापन से पहले जापान का सम्राट केवल नाम का शासक था और वास्तव में शोगुन की उपाधि वाले सैनिक तानाशाह राज करता था।
सन् 1543 में पुर्तगाली जापान से संपर्क करने वाली पहली यूरोपियाई शक्ति बने। जापान उस समय अपने मध्यकालीन युग में था। भालों और तलवारों के अलावा जापानियों के पास कोई अस्त्र न थे। जापान का राजनैतिक वातावरण सामंतवादी था जिसमें देश भिन्न हिस्सों में बंटा हुआ था और हर क्षेत्र पर एक तानाशाह का राज था। जापान के केंद्र में एक सम्राट था लेकिन वह केवल नाम का राजा था। असली शक्ति शोगुन के पास हुआ करती थी, जो स्वयं एक सैन्य तानाशाह होता था। जापान ने अपनी संस्कृति और आर्थिक व्यवस्था बचने के लिए यूरोपियाई व्यापार को बहुत सीमित रखा।
उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम चरण में जापान का उत्कर्ष एवं यूरोपीयकरण एशिया तथा नवीन साम्राज्यवाद के इतिहास में एक युगांतरकारी घटना माना जाएगा। मेईजी पुनःस्थापना ने देश में एक नया जागरण पैदा किया और जापान में पश्चिमीकरण तथा सुधारों की एक लहर दौड़ पड़ी। कुछ ही वर्षां में जापान देखते-देखते एक अत्याधुनिक राष्ट्र बन गया। अब कसी भी समुन्नत यूरोपीय राज्य से उसकी तलना की जा सकती थी।
जापान ने शुरू में अपना आधुनिकीकरण आत्मरक्षा के उद्देश्य से किया था। यह उस अनुभव का परिणाम था कि जब तक जापान स्वयं अपने को यूरोपीय राज्यों को समकक्ष नहीं बना लेगा, तब तक परिश्चम के अन्य देश उसे चैन से नहीं रहने देंगे और उसकी स्वतंत्रता भी समाप्त कर देंगे। लेकिन, उन्नीसवी सदी के अंत में जापान का वह उद्देश्य समाप्त हो गया। अब जापान में हर क्षेत्र में पाश्चात्य जगत का अनुकरण करने की लालसा जगी। यह लालसा राष्ट्रीय जीवन में परिवर्तन तक सीमित न रही, वरन् साम्राज्यवादी जीवन की ओर भी बढ़ गई, जिसके फलस्वरूप यूरोपीय देशों तथा अमेरिका की तरह वह भी साम्राज्यवादी देश हो गया।
जापानी साम्राज्यवाद के विकास का दूसरा कारण वहाँ सैन्यवाद का विकास था। मेईजी पुनःस्थापना के बाद जापान बड़ी तेजी से आधुनिकता की ओर अग्रसर हुआ। इस आधुनिकता के लहर में जापान के सैनिक पुनर्गठन पर विशेष ध्यान दिया गया। इसके पूर्व जापान का सैनिक संगठन सामंतवादी व्यवस्था पर आधारित था। लेकिन, मेईजी पुनःस्थापना के उपरांत जापान के सैनिक संगठन में आमूल परिवर्तन हुआ। सेना के सामंतवादी स्वरूप का अंत कर दिया गया। जब जापान में अनिवार्य सैनिक सेवा लागू की गई और एक राष्ट्रीय सेना का संगठन हुआ। इस सेना को प्रशिक्षित करने के लिए प्रशा से सैनिक विशेषज्ञ बुलाए गए, जिन्होंने जापानी जलसेना और स्थलसेना का संगठन आधुनिक प्रशियन ढंग से किया। सेना को नियमित रूप से वेतन मिलने लगा और सैनिकों पर प्रशियन अनुशासन कायम हुआ।
मेइजी पुनर्स्थापन से जापान में औद्योगीकरण की रफ़्तार बहुत तेज़ हो गई। "देश को धनवान बनाओ, फ़ौज को शक्तिशाली बनाओ" (富国強兵, फ़ुकोकू क्योहेई) के नारे के अंतर्गत विकास कार्य हुआ। बहुत से जापानी पश्चिमी विश्वविद्यालयों में पढ़ने भेजे गए और विज्ञान और तकनीकी ज्ञान वापस लाए। जापानी समाज चार वर्णों में बंटा था, लेकिन शासकों ने जातपात मिटने पर बहुत ज़ोर लगाया। धीरे-धीरे क्षेत्रीय तानाशाहों की ज़मीने ज़ब्त करके राष्ट्र को राजनैतिक रूप से संगठित किया गया। पुरानी व्यवस्था में क्षत्रीय जैसे सामुराई योद्धाओं को सरकार वेतन दिया करती थी जो सरकारी ख़ज़ाने के लिए बहुत बड़ा बोझ था। इसे बंद कर दिया गया। बहुत से सामुराई सरकारी नौकरियाँ करने लगे लेकिन कुछ ने विद्रोह और दंगा-फ़साद किया, जिन्हें नई बनी शाही जापानी सेना ने कुचल दिया।