3 Types of Happiness from Bhagvadgeeta.

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ABHISHEK CHAVLE

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Ай бұрын

Bg. 18.37 -- सतोगुणी सुख
Bg. 18.38 -- रजोगुणी सुख
Bg. 18.39 -- तामसी सुख
Bg. 18.37
यत्तदग्रे विषमिव परिणामेऽमृतोपमम् ।
तत्सुखं सात्त्विकं प्रोक्तमात्मबुद्धिप्रसादजम् ॥ ३७ ॥
अनुवाद
जो प्रारम्भ में विष के समान है, किन्तु अन्त में अमृत के समान है तथा जो मनुष्य को आत्म-साक्षात्कार के लिए जागृत करता है, उसे सतोगुणी सुख कहा जाता है।
Bg. 18.38
विषयेन्द्रियसंयोगाद्यत्तदग्रेऽमृतोपमम् ।
परिणामे विपरीते तत्सुखं राजसं स्मृतम् ॥ ३८॥
अनुवाद
जो सुख इन्द्रियों के विषयों के साथ सम्पर्क से प्राप्त होता है और जो पहले अमृत के समान प्रतीत होता है, किन्तु अंत में विष के समान प्रतीत होता है, वह रजोगुणी कहा जाता है।
Bg. 18.39
यदग्रे चानुबन्धे च सुखं मोहनमात्मन: ।
निद्रालस्यप्रमादोत्थं तत्तामसमुदाहृतम् ॥ ३९ ॥
अनुवाद
जो सुख आत्म-साक्षात्कार से अन्धा है, जो आरम्भ से अन्त तक मोहमय है तथा जो निद्रा, आलस्य और मोह से उत्पन्न होता है, वह तामसी कहा गया है।

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