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|| राधे राधे ||
बरसाना से करीब 7 किलोमीटर दूर पिसाया गाँव में स्थित अश्वत्थामा की झाड़ी के दर्शन करेंगे।
विशाल क्षेत्र में फैले या सघन वन में तै कोऊ एक लकड़ी तोडकै बाहर नाय लै जा सकै। ऐसौ करवे तै अनिष्ट है जावै। शनिवार कूँ अश्वत्थामा की झाड़ी की परिक्रमा लगै जामैं आसपास के गामन ते ऊ श्रद्धालु आमें। जानै यहाँ तप करौ, बाय सिद्धि मिली। झाड़ी के बीच में रासमण्डल है। आजहूँ इतकूँ नित्य रात्रि कूँ श्रीराधामाधव कौ रास होवै। 555 बीघा में फैली झाड़ी में कावली, छोंकरा, आम, गूलर व कदम्ब वृक्ष है। शांतिपूर्ण परिवेश में यहाँ कछु साधु संत कुटिया बनाकर भगवद भजन करते है। पशु पक्षी भी मौज से रहवै है। झाड़ी तै कछु दूरी पर अश्वत्थामा कौ मंदिर और किशोरी कुण्ड है। मंदिर में श्रीराधामाधव व निताई गौर के विग्रह दर्शनीय है। अश्वत्थामा ने यहाँ पै तपस्या की है। अश्वत्थामा की झाड़ी तै कोई भी लकड़ी तोडकै बाहर नाय लै जा सकै। जानै भी ऐसा कियौ बाकौ बुरो हुओ।
वज्रनाभ के समय में यह सघन वन प्रदेश था। पांडवों के वंश नाश हेतु परीक्षित पर ब्रह्मशास्त्र छोड़ने का जघन्य कार्य के कारण श्रीकृष्ण से शापित द्रोण पुत्र अश्वत्थामा कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए इसी वन में आये। इस पावन ब्रजभूमि में आकर वह कष्टोन्मुक्त हो गए। इस वन में गौचारण के लिए आये कन्हैया को भूख लगी। वह झाक अरोगने लगे। आसपास पानी नही था। कान्हा को प्यासा देख दाऊ भैया जल लेकर आये और उन्हें पिलाया। इसलिए यह स्थान पियासो या पिसायौ गाँव कहलाया। "ब्रजभक्ति विलास ग्रंथ में इसे पिपासावन कहा गया है। यह वन तृष्णा को मुक्त करने वाला है। यह श्रीकृष्ण की विहार क्रीड़ा प्यास की शांति के लिए है।"
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