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◆ आख़िरी स्त्री / अहर्निश सागर
एक स्वप्न में पुल पार करता हूँ
दो क़दम आगे चलता हूँ
पुल पीछे दो क़दम ढह जाता है
पुल पार होते ही
पूरा नदी में ढह जाता है
एक उम्र में जब स्त्रियों को देखता हूँ
तो लगता है
स्त्रियाँ कभी बूढ़ी नहीं होतीं
वे पुल बन जाती हैं
हम उन्हें पार करते हैं
और वे समय की नदी में ढह जाती हैं
बच्चे बग़ीचों में झूलों पर झूलते हैं
सहसा कहीं से पिता की आवाज़ सुनाई पड़ती है
वे दौड़कर पिता के पास चले जाते हैं
ख़ाली झूला बग़ीचे के एकांत में झूलता रहता है
घर की बुज़ुर्ग स्त्री
घर के एक कोने में माला जपते हुए
आगे-पीछे झूल रही है
कहीं से पिता की आवाज़ आई होगी
कुछ था जो दौड़ता हुआ
पिता के पास चला गया
और उस स्त्री की देह
संसार के बग़ीचे में झूलती हुई छूट गई
झूले भी हवा में बना पुल होते हैं
जो नीरवता के दो अज्ञात किनारों को छूते हैं
जब वे ठहर जाते हैं
वे ढह जाते हैं
आख़िरी स्त्री जो हमारा पुल बनती हैं
पार करने की उकताहट से भर चुका मैं
उसे पार नहीं करूँगा
उसके साथ ढह जाऊँगा।
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