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लघुकथा- अनावृता
निर्देशन- रिंकी राय भट्टाचार्य
कहानी- आशापूर्णा देवी
ये जरुरी तो नहीं की पति अपनी तरक्की के लिए अपने बॉस को घर पर बुलाए और पत्नी को हर रोज़ अपना साझीदार बनने को कहे| क्या पत्नी का ना कहना और अपने बच्चे का ख्याल रखना तलाक का कारण हो सकता है? शायद यही स्थिति मानस और तृप्ति के वैवाहिक जीवन को टूटने के कगार पर खड़ी कर देती है| आलोक क्या अपने पिता के नाम से पहचाना जाएगा या फिर माँ के नाम से.....कहा जाता है स्त्री शक्ति के विरुद्ध समाज में कई शक्तियाँ काम करती हैं| हमेशा पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं का अस्तित्व डगमगाने का खतरा बना रहता है| कहानी इन्हीं रिश्तों को रेखांकित करती है|