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Dharti Upar Swarg, धरती ऊपर स्वर्ग,
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A. महल में जीना मेरे लिए अब नरक में जीने के समान हो गया है। में अब यहां और नही रह पाऊंगा।
बादशाह ने अपने साथ चद्दर के अलावा एक तकिया, एक बिछौना और एक पानी पीने का लोटा ले लिया।
रातों रात बादशाह ने नगर से कई कोस दूर का सफर तय कर दिया और पीछे मुड़कर भी नही देखा।
अगले दिन की सुबह हो चुकी थी। बादशाह को भूख सताने लगी। तभी देखा की एक मालिन बगीचे के बाहर बेर बेच रही रही हैं।
A. ए माई, बैर कैसे दिए?
M. भाई एक आने का एक सेर देती हैं।
A. माई मेरे पास आना नही है। लेकिन ये जूतियां है। इनकी कीमत ढाई लाख रुपए है। मुझे इसके बदले समान तोल कर बैर दे दे।
बादशाह ने उसे उठाने के लिए हाथ बढ़ाया और मालिन ने भी।
दोनो उस बैर के लिए झगड़ने लगे अपना अपना बताने लगे।
तभी वहां कबीर साहेब प्रकट हुए।
परमात्मा बादशाह को थप्पड़ मर कर वहां से अंतर्ध्यान हो गए।
बादशाह रोता हुआ वहां से चल पड़ा।
रास्ते में चलते हुए देखा की एक गरीब व्यक्ति एक पेड़ के नीचे तने से सिर लगाए हुए सो रहा है। बादशाह ने उसी वक्त सिराना और बिछौना फेंक दिया।
कुछ दूर और चलने पर देखा की एक साधु नदी से हाथो में जल भरकर पानी पी रहा था। बादशाह ने भी अपना लोटा फेंक दिया।
तभी झोपड़ी में सो रहे दो पति पत्नी कुछ बाते कर रहे थे, जो की बादशाह को आसानी से सुनाई दे रही थी।
M. भगवान की दया से अच्छी बरसात हो गई। अब बीजने के लिए काफी है।
W. हां जी, अपनी गाय के लिए भी अब अच्छा चारा हो जायेगा।
M. हा, भगवान ने मोज कर दी। ऐसी मोज तो बल्ख़ भुखारा के बादशाह के भी नही है।
A. कितने मूर्ख है ये दोनो, एक झोपड़ी में पड़े है और बादशाह को भी तुच्छ समझ रहे है।
अगले दिन सुबह बादशाह उठा ओर दोनो को जाकर समझाने लगा।
A. भाई, रांडी ढांडी ना तजे, ये नर कहिए काग।
बलख बुखारा जो त्याग दिया, थी कोई पिछली लाग।।
हे मूर्ख मानव तेरे से तो ये एक कानी स्त्री और गाय नही छोड़ी जा रही, भाई मुझ बलख बुखारे को देख जिसने सब कुछ त्याग दिया। भाई ये कोई पिछले जन्मों का ही गुण हैं।
यह कहकर बादशाह वहां से निकल गया।
आगे चलकर बादशाह एक साधु की कुटिया के पास पहुंचा।
सुनने में आया की यह साधु कई वर्षो से यहां साधना कर रहा है।
बादशाह उसके पास जाकर बैठ गया।
S. यहां मत ठहरो, यहां खाने पीने के लिए कुछ नहीं है। अपना कही और जाकर देख ले।
A. अरे नादान, मैं कोई तेरा मेहमान बनकर थोड़ी आया हूं? में जिसका मेहमान हूं वह मेरे रिजक की अपने आप व्यवस्था करेगा। कोई किसी का नही खाता। इंसान अपनी किस्मत साथ लेकर आता है।
अरे तू तो अच्छा मानव भी नही जान पड़ता और बनकर बैठा है साधु? परमार्थ के बिना इंसान इंसान नही, पशु के सामन है। और परमात्मा परमार्थ से ही मिलता है।
बादशाह कुछ दूरी पर जाकर बैठ गया।
तभी बादशाह के पास ऊपर से एक बड़ा थाल आया। बादशाह ने कपड़ा हटाकर देखा की उसमे कई प्रकार के पकवान और फल आदि थे।
कुछ देर बाद उस साधु के पास आया। उसमे केवल दो सुखी रोटी और एक लोटा पानी का आया जो की बिना ढके कपड़े से आया।
S. हे भगवान, ऐसा भेदभाव क्यों, में तो कई दिनों से आपकी साधना कर रहा हूं, और मुझे ऐसा सुख टूक? मेरे लिए भी वैसा ही भोजन भेजिए।
G. अरे मूर्ख, ये साधारण व्यक्ति नही था। इसने मेरे लिए बलख बुखारे का राज त्याग दिया। इतने शानो शौकत का जीवन त्यागा है। इसके लिए लिए मैं क्या नही कर सकता।
और तूने क्या किया, तूने अपने ही पेट को पालने वाला साधन छोड़ा है। तेरे पास न तो कोई मकान था, और न ही कोई पत्नी या बच्चे। तेरा वो घास खोदने का यंत्र अभी कही नही गया। जा और जाकर करले जो तू उससे कर सकता है तो। जो मिल रहा है उसी में भगवान की रजा मान और खुश रहा कर। बाहर कदम बढ़ाया तो कुछ नही मिलने वाला।
यदि भक्त में अभिमान है तो वह मेरे से दूर है, और यदि आधिनी है तो वह मेरे करीब है।
उधर बादशाह ने थाल वापस ढक दिया।
A. हे अल्लाह, अपने दास को सुखा टूक दीजिए। ये बला तो मैं त्याग कर आया हु। इससे तो वही विकार उत्पन्न होंगे। मुझे ये नही चाहिए।
में भी अब मेहनत कर के कमा कर खाऊंगा।
यह सुनकर साधु की गर्दन शर्म के मारे नीची हो गई।
S. मुझे क्षमा करो भगवान, आज के बाद में आपकी रजा में ही प्रसन्न रहूंगा।