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बतियां दौरावत में आप का एक बार फिर स्वागत। आज का आख्यान गुरू शिष्य परंपरा को समर्पित है, और आज का राग है - अभोगी । इस राग में जब मेरी दो बंदिशें बनीं - विलंबित रूपक "हम भये बादर" और द्रुत एकताल में “रस बरसत तोरे घर" । गुरु के ज्ञानसागर से कुछ बूंदें प्राप्त करने के बाद, मैं शिष्य बादल की तरह इनका वहन कर, इन्हें दूर देस ले जाकर वहां बरसाती हूँ, यही मेरी भूमिका है।
गुरू के सुरों का ही संदेसा, उन्हीं की गायकी मैंने पायी है, अपने अंदर भर ली है, जिसे ले जाकर मैं जब दूर देस में बरसाती हूँ, तो मुझे वाहवाही मिलती है। असल में यह श्रेय तो गुरू का है। इस भाव को व्यक्त करने के लिए मैंने कहा है, "हम भये बादर"…
भारतीय शास्त्रीय संगीत परंपरामें ‘गुरू-शिष्य’ नाता एक ऐसा पवित्र बंधन माना गया है, जिसे शब्दों में बयाँ करना मुष्किल ही नहीं बल्कि असंभव है। सदियों से हर शिष्य की पीढ़ी अपने गुरु के प्रति यही भाव लेकर फली फूली और, न केवल अपने आपको, बल्कि पूरे संगीत जगत को समृद्ध करती रही। मेरा मानना है कि इस बंदिश में कथित भाव केवल अकेले मुझतक सीमित नहीं। यह हर पीढी के शिष्य का अपने गुरु के प्रति प्रातिनिधिक भाव है।
द्रुत बंदिशके शब्द हैं -
“रस बरसत तोरे घर,
रसिक सजन मोहत मन” ॥
दूर दराज़ के रसिकों की प्यास बुझाने पर मुझ बादर को जो अपरिमित समाधान प्राप्त होता है, उसीका फल स्वरूप है यह बंदिश...
आइये, अब इन दोनों बंदिशों को सुनते हैं ….
Credits:
Raag: Abhogi
Composition and Vocal Presentation: Dr. Ashwini Bhide Deshpande
Tabla: Siddharth Padiyar
Creative Ideation: Amol Mategaonkar
Audio Recording, Mixing: Amol Mategaonkar
Video Recording, Editing: Amol Mategaonkar, Kannan Reddy
Color Grading: Kannan Reddy
Special Thanks To: Smt Pushpa Bharti, Raja Deshpande
Location Courtesy: Maya & Mukund Dharmadhikari
Opening Title Photo Credit: Varsha Panwar
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