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भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने 1928 में लाहौर में एक ब्रिटिश जूनियर पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके बाद सेंट्रल एसेंबली में बम फेंक दिया। बम फेंकने के बाद वे भागे नहीं, जिसके नतीजतन उन्हें फांसी की सजा हुई थी। तीनों को 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल के भीतर ही फांसी दे दी गई थी। जिस वक्त भगत सिंह जेल में थे, उन्होंने कई किताबें पढ़ीं थी। 23 मार्च 1931 को शाम करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह और उनके दोनों साथी सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई। फांसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे।
एक दिन पहले ही दे दी फांसी :-
केंद्रीय असेम्बली में बम फेंकने के जिस मामले में भगत सिंह को फांसी की सजा हुई थी उसकी तारीख 24 मार्च तय की गई थी। लेकिन उस समय के पूरे भारत में इस फांसी को लेकर जिस तरह से प्रदर्शन और विरोध जारी था उससे सरकार डरी हुई थी और उसी का नतीजा रहा कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को चुपचाप तरीके से तय तारीख से एक दिन पहले ही फांसी दे दी गई
आखिर क्या हुआ 23 मार्च के दिन :-
जिस वक्त भगत सिंह जेल में थे उन्होंने कई किताबें पढ़ीं। 23 मार्च 1931 को शाम करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गई। फांसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी ही पढ़ रहे थे। जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनकी फांसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा था- ठहरिये! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले। फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले - ठीक है अब चलो।
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