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यह प्रवचन वैशाख सुक्ल चतुर्थी विक्रम संवत 2055 29 अप्रेल 1998 को सांय 4 बजे गीता भवन नॉ 3 स्वर्ग आश्रम ऋषिकेश में हुवा जिसमे परमात्मा से प्रेम कैसे हो ये बताया गया हे राम राम स्वामी राम सुखदास (१९०४ - ३ जुलाई २००५) भारतवर्ष के अत्यन्त उच्च कोटि के विरले वीतरागी संन्यासी थे। वे गीताप्रेस के तीन कर्णाधारों में से एक थे। अन्य दो हैं- श्री जयदयाल गोयन्दका तथा श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार।
परिचय[संपादित करें]
स्वामी रामसुखदास का जन्म राजस्थान के नागौर जिले के ग्राम माडपुरा में रूघाराम पिडवा के यहाँ माघ शुक्ला त्रियोदशी सन् 1904 मे हुआ। उनकी माता कुन्नीबाई के सहोदर भ्राता सद्दाराम रामस्नेही सम्प्रदाय के साधु थे।
४ वर्ष की आयु मे ही माताजी ने राम सुखदास को इनके चरणो मे भेट कर दिया। किसी समय स्वामी कान्हीराम गांवचाडी ने आजीवन शिष्य बनाने के लिए आपको मांग लिया। शिक्षा दीक्षा के पश्चात वे सम्प्रदाय का मोह छोडकर विरक्त (संन्यासी) हो गये और उन्होंने गीता के मर्म को साक्षात् किया और अपने प्रवचनो से निरन्तर अमृत वर्षा करने लगे। गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा संचालित समस्त साहित्य का आप वर्षो तक संचालन करते रहे। आपने सदा परिव्राजक रूपमें सदा गाँव-गाँव, शहरोंमें भ्रमण करते हुए गीताजीका ज्ञान जन-जन तक पहुँचाया और साधु-समाजके लिए एक आदर्श स्थापित किया कि साधु-जीवन कैसे त्यागमय, अपरिग्रही, अनिकेत और जल-कमलवत् होना चाहिए और सदा एक-एक क्षणका सदुपयोग करके लोगोंको अपनेमें न लगाकर सदा भगवान्में लगाकर; कोई आश्रम, शिष्य न बनाकर और सदा अमानी रहकर, दूसरोकों मान देकर द्रव्य-संग्रह, व्यक्तिपूजासे सदा कोसों दूर रहकर अपने चित्रकी कोई पूजा न करवाकर लोग भगवान्में लगें ऐसा आदर्श स्थापित कर गंगातट, स्वर्गाश्रम, हृषिकेशमें आषाढ़ कृष्ण द्वादशी वि॰सं॰२०६२ (दि. ३.७.२००५) ब्राह्ममुहूर्त में (3 बजकर 40 मिनिट) भगवद्-धाम पधारे। सुझाव या सुचना हेतु श्री नाथ आश्रम सीकर राजस्थान दूरभाष 9521229943