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chhaktala bhgoriya छकतला भगोरिया भारी भीड़

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☆꧁Pawan K.  Editor꧂☆

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Күн бұрын

०१.भगोरिया उत्सव कब, क्यों और कैसे मनाया जाता है|
एमपी के आदिवासी अंचलों में भगोरिया उत्सव की धूम है। आदिवासी बाहुल्य जिलों में भोगरिया मेला लगा हुआ है। मेले में हजारों लाखो की संख्या में हर दिन लोग पहुंच रहे हैं। मेले में आदिवासी समाज के लोग पारंपरिक वेश भूषा में नजर आ रहे हैं।
एमपी के आदिवासी बाहुल्य इलाकों (जिला अलिराजपुर ) में भगोरिया की धूम है। जगह-जगह पर भगोरिया मेला लगा हुआ है। भगोरिया मेले में आदिवासी लोकसंस्कृति के रंग चरम पर नजर आते हैं। पर्व की तारीखों की घोषणा के साथ ही जगह-जगह पर भगोरिया हाट को लेकर तैयारिया शुरू हो जाती है। इन मेलों में आदिवासी संस्कृति और आधुमिकता की झलक देखने को मिलती है। कहा जाता है कि आदिवासियों के जीवन में हर्ष और यह उल्लास है। इस पर्व मे लोग ढोल मांदल बजा कर नाचते है | और खुशियाँ मनाते है |
स्थान __ छकतला जिला - अलिराजपुर मध्यप्रदेश भारत
महत्वः
पश्चिमी निमाड़, झाबुआ और आलीराजपुर में देश-विदेश में प्रसिद्ध लोक संस्कृति का पर्व भगोरिया बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। होली के 7 दिन पहले से मनाए जाने वाले इस पर्व में आदिवासी अंचल उत्सव की खुमारी में डूबा रहता है। होली के पहले भगोरिया के सात दिन ग्रामीण खुलकर अपनी जिंदगी जीते हैं। देश के किसी भी कोने में ग्रामीण आदिवासी मजदूरी करने गया हो लेकिन भगोरिया के वक्त वह अपने घर लौट आता है। इस दौरान रोजाना लगने वाले मेलों में वह अपने परिवार के साथ सम्मिलित होता है। भगोरिया की तैयारियां आदिवासी महीनेभर पहले से ही शुरू कर देते हैं। दिवाली के समय तो शहरी लोग ही शगुन के बतौर सोने-चांदी के जेवरात व अन्य सामान खरीदते हैं लेकिन भगोरिया के सात दिन ग्रामीण अपने मौज-शौक के लिए खरीदारी करते हैं। लिहाजा व्यापारियों और आदिवासीयो को भगोरिया उत्सव का बेसब्री से इंतजार रहता है। यही नही लोग बाहर देश और विदेश से आगतुंक आते है भगोरिया मेला मे और आदिवासियो कि संस्कृति पंरमपरा को जानने का समझने का प्रयास करते है|3. बड़ा सा ढोल बजाते हैं:भगोरिया हाट में जगह-जगह
जगह भगोरिया नृत्य में ढोल की थाप, बांसुरी, घुंघरुओं की ध्वनियां सुनाई देती हैं तो बहुत ही मनमोहक दृश्य निर्मित कर देती है। बड़ा ढोल विशेष रूप से तैयार किया जाता है, जिसमें एक तरफ आटा लगाया जाता है। ढोल वजन में काफी भारी और बड़ा होता है। जिसे इसे बजाने में महारत हासिल हो वही नृत्य घेरे के मध्य में खड़ा होकर इसे बजाता है।
एक से रंग की वेश-भूषा में युवक-युवतियां नजर आते हैं। युवतियां नख से शिख तक पहने जाने वाले चांदी के आभूषण, पावों में घुंघरू, हाथों में रंगीन रुमाल लिए गोल घेरा बनाकर मांदल व ढोल, बांसुरी की धुन पर बेहद सुंदर नृत्य करती हैं। लोक संस्कृति के पारंपरिक लोकगीतों से माहौल में लोक संस्कृति का एक बेहतर वातावरण बनता जाता है साथ ही प्रकृति और संस्कृति का संगम देखने मिलता है

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