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देव शास्त्र गुरु की पूजा....केवल रवि किरणों से ...में क्या त्रुटि है ?

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Sudha Samadhan

Sudha Samadhan

Күн бұрын

Пікірлер: 17
@alkajain1643
@alkajain1643 3 ай бұрын
सच बताया पूजा का भाव।नमोस्तु पूज्य श्री गुरूवर 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
@AJ-kk8uk
@AJ-kk8uk 4 ай бұрын
नमोस्तु भगवन 🙏🙏🙏🙏🙏 नमोस्तु गुरुदेव 🙏🙏🙏
@ashishjain1612
@ashishjain1612 3 ай бұрын
किसी भी साधु महात्मा को प्रभु जी कि पीठ करके नहीं बैठना चाहिए।
@ranujain1
@ranujain1 4 ай бұрын
1000 % sahi kaha hai
@archanagodha5428
@archanagodha5428 3 ай бұрын
यह धूप अनल मे खेने से यह अनादि काल से जग में पूजन का धूप वाले अर्घ्य की पंक्ति है
@NarendraJain-dc9il
@NarendraJain-dc9il 3 ай бұрын
महाराज की बात संसारी जीवो की दृष्टि से ठीक है लेकिन कमी हमारे देखने में है पूजा के अंदर नही । ये धूप अनल में खेने से कर्मो को नही जलाएगी । यही सत्य है l लेकिन यह कहना की यह धूप की निंदा है यह सम्यक नही है । बारह भावनाओं का चिंतन करने से देव का स्वरूप स्पष्ट समज में आने लगेगा । जब आप पूजा के लिए जाते है तो भक्तिवश जाते है । और पूजा को ध्यान पूर्वक पड़ने वाले जैन धर्म के बारे में कुछ सीख लेते है । यही पूजा का फल है । यह भक्ति से ज्ञान की यात्रा है । यही तत्व ज्ञान सुख का कारण है । पूजा के शब्दों से साफ पता चलता है की लिखने वाले को जैन धर्म का अच्छा ज्ञान था उसने ये जानते हुए भी की पूजा से कुछ नही मिलता फिर भी पूजा लिखी । क्यों ? जब आप इसका उत्तर स्वयं देने में सक्षम हो जाए तब समझना की आप मानव मन और उसकी पर्याओ के बारे में थोड़ा थोड़ा जानने लग गए है ।
@varshajain6168
@varshajain6168 4 ай бұрын
नमोस्तु महाराज जी सही कहा है 💯🙏🏿
@niteshkasliwal-hy2pn
@niteshkasliwal-hy2pn 3 ай бұрын
यह भी पता नहीं कि केवल रवि वाली पूजा में "यह धूप अनल में खेने से" वाली पंक्ति है ही नहीं, मनगढ़ंत अर्थ निकाला है। पुरानी कई पूजा में ऐसी जयमालाएं हैं। और जन्मदिन के दिन 12 भावनाएं भाने की परंपरा तो तीर्थंकरों से रही है, अधिकांश का जन्म कल्याणक के दिन ही तप कल्याण कैसे आया
@dharmeshjain2637
@dharmeshjain2637 3 ай бұрын
तो क्या 12 भावना का चिंतन हमेशा नहीं होना चाहिए??? प्रभु के चिंतन में 12 भावना का चिंतन समाहित नहीं है क्या?? कुछ तो गड़बड है.....
@user-xp5gu7hh2m
@user-xp5gu7hh2m 3 ай бұрын
दुखी न होओ, तेलानी रामा सीरियल में तथाचार्य को देख लो, जो निरंतर पं. रामाकृष्णा के विरुद्ध साजिश करता रहता है, ऐसे बहुत से तथाचार्य हुए हैं, हो रहे हैं, और होंगे।
@ayushjain4226
@ayushjain4226 4 ай бұрын
सुधा सागर जी जैन धर्म को कही का कही ले जा रहे है। साव्धान श्रावको। एसे मुनियो से सावधान।✋
@sahiljain7296
@sahiljain7296 4 ай бұрын
Sai kaha bhai Kaha se (⬇️) Kaha (⬆️) le ja rahe hai Or savdhar tum jese shravako se rehna chahiye jo apne hi muni per swal uthate hai..
@ayushjain4226
@ayushjain4226 4 ай бұрын
@@sahiljain7296 साव्धान तुम्हारे जैसे मूर्खो से रहना चाहिये जो भ्रष्टो को मुनि मान के बैठे हो। इतनी भी अक्ल नही की क्या हो रहा है। लेकिन जो श्रावक ज्ञानी है और जागरुक है वो समझ चुके है की क्या हो रहा है।
@SurajJain-ed2bv
@SurajJain-ed2bv 4 ай бұрын
विद्यासागर जी महाराज के अनेक त्यागी व्रती, ब्रह्मचारी, ये पूजा करते रहे हैं?सुधा सागरजी ने बहुत समय बाद उन्हें भ्रष्ट होने से बचाया? गजब का कुतर्क है अनेक पूजाओं में,कही भक्ति, सिद्धान्त, तत्व, भावना, गति,लोक, स्वर्ग,नर्क आदि जैन धर्म के अनेकों विषय पूजा एवं जयमाला,जो उपयोग को स्थिर करने में मदद करते हैं। मन्दिर में बारह भावना भाने में क्या बुराई है?
@ayushjain4226
@ayushjain4226 4 ай бұрын
सही बात है
@Belayne_
@Belayne_ 3 ай бұрын
बारह भावना नित्य और प्रतिसमय पढ़ी जा सकती है इसके लिए अवसर नही खोजते कुतर्क से बचना चाहिए
@ayushjain4226
@ayushjain4226 3 ай бұрын
@@Belayne_ एकदम सही कहा आपने।
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