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आज के युवाओं की पहली चाहत यही होती है कि करोड़ों कमाएं और प्रसिद्धि प्राप्त करें। परंतु अहमदाबाद में रहने वाले गोपाल सुतरिया ने विरासत में मिले हीरे के बिजनेस को छोड़कर सच्चे अर्थों में गौसेवक हैं। पहले बिजनेस से गौसेवा के लिए समय नहीं मिल पाता था…
मूल रूप से भावनगर के वल्लभीपुर के रहने वाली गोपाल सुतरिया की पिता गगजीभाई बरसों से मुम्बई के हीरा उद्योग से जुड़े हैं। इसलिए पढ़-लिखकर गोपाल भाई पिता की विरासत को संभालने लगे। शिक्षा-दीक्षा मुम्बई में ही हुई। दस साल तक बिजनेस को नई ऊंचाइयां दी। उसके बाद अहमदाबाद आकर कंस्ट्रक्शन का व्यवसाय शुरू किया। पर गौसेवा के प्रति कुछ न कर पाने की पीड़ा उन्हें सताती रही। पिता के संस्कारों और भारतीय संस्कृति के प्रति स्व-स्फूर्त धीरे-धीरे गौसेवा में मन लगने लगा। देखते ही देखते उन्होंने अहमदाबाद के साणंद में बसी गीर गौशाला बना दी।
गाय का स्पर्श ही मां के वात्सल्य नहला देता है
गोपाल भाई कहते हैं कि करोड़ों का टर्नओवर वाले बिजनेस से ज्यादा सुकून मैं गाय के सेवा में पाता हूं। पहले तो धंधे में इतना रम गया कि समय ही नहीं मिल पाता था। तब तय किया कि धंधा ही छोड़ दिया जाए। बस फिर क्या था, सौराष्ट्र की देशी गीर गाय की गौशाला बना ली। गाय के साथ मानव का जीवन किसी प्राणी के साथ नहीं, परंतु पवित्र आत्मा के साथ संबंध बनाने के बराबर है। वे गाय को माता मानते हैं। वे कहते हैं कि गाय का संवर्धन मानव जीवन के लिए मानवीय संवर्धन से भी महत्वपूर्ण है। गाय का स्पर्श मां के वात्सल्य से नहला देता है।
भारत की श्रेष्ठ गौशाला का अवार्ड
गोपाल भाई की गौशाला में सारे काम अत्याधुनिक तरीके से किए जात हैं। उनकी गौशाला को भारत की श्रेष्ठ गौशाला का अवार्ड मिल चुका है। गौशाला की अन्य विशेषताएं:-
-यहां सभी गायों को नाम से पुकारा जाता है।
-150 गीर गायों का परिवार है।
-गायों का शरीर हाथी की तरह है।
-यहां के सांड की कीमत करोड़ों में है।
-गौशाला की गाय किरण ने 16 वीं बछड़े को जन्म देने के बाद भी 25 लीटर दूध देती है।
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