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प्रस्तुत एकांकी 'दीपदान' श्री डॉक्टर रामकुमार वर्माद्वारा रचित है। दीपदान की कथा चित्तौड़ एक ऐतिहासिक घटना पर आधारित है, जिसमें पन्ना धाय के अपूर्व त्याग,बलिदान एवं देशप्रेम की कहानी है। दीपदान’ की कथा कुँवर उदयसिंह का संरक्षण करनेवाली धाय पन्ना के द्वारा कुँवर उदयसिंह के प्राणों की रक्षा करने और उसके लिए अपने पुत्र चंदन के बलिदान करने के प्रसंग से संबंधित है। कथा सन 1536 ईसवीं में राजस्थान के चित्तौड़ दुर्ग में घटित होती है। चित्तौड़ के महाराणा साँगा का देहांत हो चुका है और उनके राज्य का उत्तराधिकारी उनका सबसे छोटा पुत्र कुँवर उदयसिंह है, जिसकी उम्र अभी चौदह वर्ष है। कुँवर उदयसिंह की देखरेख और लालन-पालन का कार्य पन्ना नाम की एक स्वामीभक्त स्त्री कर रही है, जिसे पन्ना धाय के नाम से जाना जाता है। उसका तेरह वर्ष का चंदन नाम का एक पुत्र भी है, जो कुँवर उदयसिंह के साथ खेलता रहता है। महाराणा साँगा की मृत्यु के पश्चात् उनके भाई पृथ्वीराज का एक दासी पुत्र बनवीर, जिसकी आयु बत्तीस वर्ष है, राज्य पर अपना अधिकार करने के लिए प्रयत्नशील है। ‘दीपदान’ की सारी कथा पन्ना धाय और बनवीर पर आकर चरम सीमा की स्थिति में आकर ठहर जाती है। इस विकट समय में आनेवाली घटनाओं से थोड़ा भी विचलित न होते हुए पन्ना तत्काल निर्णय लेती है और कुंवर उदय सिंह के प्राणों की रक्षा के लिए अपने पुत्र चन्दन का बलिदान दे देती है !