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पुष्टिमार्गीय पंचम पीठ श्री गोकुलचंद्रमाजी हवेली कामवन के अदभुत व अलौकिक आचार्य गो0 श्री श्री 108 श्री काका वल्लभजी (प्रागट्य संवत 1729) के द्वारा श्री ठाकुरजी व स्वामिनी जी के साक्षात दर्शन के समय रचित यह अदभुत व विलक्षण कीर्तन है। श्री काका वल्लभजी भाव-भावना वाले द्वारकेश जी के चाचाजी (काका) होने के कारण आपश्री को सम्प्रदाय में श्री काका वल्लभजी के नाम से जानते हैं। आप प्रतिदिन कामवन से 8 किमी दूर "कदम्बखण्डी" नामक सुरम्य स्थल पर पधारते थे व वहां भजन करते थे। वहीं आपश्री ने श्रीठाकुरजी व स्वामिनी जी के साक्षात दर्शन कर इस पद की रचना की थी। इस पद का गायन व भाव विवेचन आपश्री की कदम्बखण्डी स्थित उसी बैठकजी पर किया गया है। यह स्थल कामवन (कामां) जिला भरतपुर स राज0 से 8 किमी दूर है
मद गज चाल चलत अदभुत गति मुसकनि कहा कहूँ नयन चढ़े खरसान।
भौंह कटाक्ष और नयन माधुरी मोह लियौ मेरौ मन रह्यौ अरुझाय।
पलछिन कल न परै सखी री धीर धरत नहिं प्रान।
श्रीवल्लभ रसिक की जीवन प्यारी बेगि खबर लीजो निज जन अपनौ जिय जान।।
डॉ भगवान दास कीर्तनकार, कामवन
(अष्टसखा श्रीगोविंददासजी के वंशज)
9828737151
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