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जब यह ब्रह्माण्ड था ही नहीं तब सर्वत्र केवल रौशनी प्रकाश था, जिसको ज्योतिर्लिंग कहा गया। जैसे ही सृष्टि का स्पंदन हुआ तो एक श्री चक्र उत्पन्न हुआ (जो इच्छा को फलीभूत भी करता है और अवांछित का संहार भी करता है)। श्री चक्र के आकार के स्पंदन होने से ज्योतिर्मय परात्पर शिव -शक्ति की उत्पत्ति हुई, उनसे ब्रह्माण्ड लिंग उत्पन्न हुआ। ब्रह्माण्ड लिंग से आत्म लिंग की उत्पत्ति हुई, आत्म लिंग से ज्ञान लिंग की और, ज्ञान लिंग से पंचभूत लिंग की उत्पत्ति हुई। पंचभूत लिंग से ही हमारे शरीर की उत्पत्ति हुई।
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