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पहाड़ी चित्रकला - (i) बसौहली शैली-बसौहली शैली गुलेर या काँगड़ा शैली से भी पुरानी है। यह शैली जम्मू से आई थी। इसका प्रभाव मण्डी, चम्बा एवं कुल्लू शैलियों पर पड़ा है।
(ii) काँगड़ा शैली-काँगड़ा शैली के जन्मदाता गुलेर की कलम है। यहीं से काँगड़ा कलम, चम्बा कलम, मण्डी कलम, कुल्लू कलम आदि चित्रकला कलमों का विकास हुआ है। काँगड़ा शैली को गुलेर शैली भी कहा जाता है। पहाड़ी चित्रकला राजा संसारबंद के शासनकाल में समृद्धि की चरम सीमा तक पहुँची। नादौन, सुजानपुर-टिहरा और आलमपुर काँगड़ा शैली के प्रमुख केन्द्र थे। हिमाचल में कांगड़ा शैली सेऊ वंशज की देन है। सेऊ उसका पुत्र मनकू और नैनसुख गुलेर के प्रसिद्ध चित्रकार थे जिन्हें काँगड़ा बुलाया गया। गढ़वाल से आया भोलाराम काँगड़ा शैली का अच्छा चित्रकार था। काँगड़ा शैली में गीत गोविंद, बारामासा, सतसई, रामायण, भगवत गीता जैसे विषयों का रेखांकन हुआ है। मैटकॉफ ने सर्वप्रथम काँगड़ा शैली के चित्रों की खोज की।
(iii) चम्बा कलम एवं रूमाल कला-चम्बा कलम का विकास राजा राजसिंह के शासनकाल में हुआ। निक्का, चम्बा कलम का प्रसिद्ध चित्रकार था जो 1765 ई. में गुलेर से चम्बा आया था। चम्बा का रंगमहल भित्ति चित्र शैली का अद्भुत नमूना है जिसे राजा उम्मेद सिंह (17481764) ने आरंभ किया। निक्का, राझां, छज्जू और हरकू राजा राजसिंह के दरबार के निपुण कलाकार थे। चम्बा कलम का उद्गम बसौहली और गुलेर चित्रकला के प्रभाव से हुआ। विक्टोरिया अल्बर्ट संग्रहालय लंदन में चम्बा के राजा उग्रसिंह का पोर्ट्रेट (रूपचित्र) सुरक्षित है।
चम्बा रुमाल-चम्बा रूमाल का विकास राजा राजसिंह और रानी शारदा के समय सर्वाधिक हुआ है। रूमाल पर लघु चित्रकला का प्रशिक्षण भूरी सिंह संग्रहालय, चम्बा में दिया जाता है। चम्बा रूमाल को प्रोत्साहित करने के लिए चम्बा के शासक उम्मेद सिंह ने रंगमहल की नींव रखी। चम्बा रूमाल पर कुरुक्षेत्र युद्ध के लघु चित्रों की कृति जो विक्टोरिया अल्बर्ट संग्रहालय, लंदन में सुरक्षित है, चम्बा के शासक गोपाल सिंह ने 1873 ई. में ब्रिटिश सरकार को भेंट किया था। चम्बा रूमाल में वर्गाकार मुलायम कपड़ों में कढ़ाई द्वारा रामायण एवं कृष्णलीला के विभन्न प्रसंगों को उकेरा गया है।
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