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@HimalayanHighways
हिमालयन हाइवेज। हिमालयन HIGHWAYS
कभी शिक्षा स्वास्थ्य और रोजगार तो कभी आपदा के दंश से पीछे छूटता बचपन की यादों वाला घर परिवार.....
पहाड़ों में जीवन हमेशा से मुश्किल रहा है लेकिन अपने सपनों के आशियाने से ऐसे सामान समेटना और घर की दीवार के पत्थरों को यू बिखरा देखना कलेजे में कभी न भूलने वाली चुभन तो दे ही जाता है।
आपदा से प्रभावित पैनगढ़ गांव में अपने चार सदस्यों को खोने वाले परिवार की आपबीती, ओर इसी आपबीती में अपनी जड़ों से दूर होने का दर्द
कहते है इंसान जीवन में कुछ भी हासिल कर ले लेकिन अपने बचपन की यादों को वो हमेशा जिंदा रखता है। बचपन का यही सफर आगे चलकर उन जड़ों में तब्दील होता है जो इंसान को ताउम्र अपनी जन्मभूमि से जोड़े रखता है। जीवन के पांच दशक से अधिक का समय पूरा कर चुके राम प्रसाद सती इस उम्र में जब अपने बचपन की यादों को देखते है तो उनके चेहरे पर वो दर्द नजर आता है जो शब्दों से बया नही किया जा सकता। कभी संघर्षों के साथ शुरू हुए इस सफर में घर की जरूरत का एक एक सामान जोड़ने के लिए की गई मेहनत आज बेकार नजर आती है। नमस्कार हिमालयन हाइवेज के एक और एपिसोड में आपका स्वागत है। दूर से खूबसूरत नजर आने वाले पहाड़ कभी कभी कितने कुरुर होते है ये आज हम आपको दिखाएंगे इस एपिसोड में।
दीपावली से ठीक पहले थराली तहसील के पैंगढ़ गांव में देर रात भूस्खलन से एक ही परिवार के चार सदस्यों की मौत हो गयी थी। भुसखनल का यह सिलसिला गांव के ऊपर पिछले एक साल से जारी था और सरकारी जिम्मेदार महकमें आश्वासनों के सहारे इस आपदा को फाइलों में नियंत्रित करने में ज्यादा भरोषा किये हुए थे। चार मौतों के बाद सरकारी हाकिमों के दौरे ओर बैठकों का दौर शुरू हुआ जो निरन्तर जारी है। लेकिन इन सबके बीच पीड़ित परिवार अब अपने अगले सफर के लिए तैयार हो चुका है। जमींदोज हो चुके घर के मलबे से बरामद सामान को समेटे यह परिवार अब गांव को अलविदा कह आगे बढ़ रहा है।
परिवार के सदस्य राम प्रसाद सती आजकल अपनी पत्नी के साथ गांव आये है और अपनी यादों को सीने में समेटे आपदा के इस दर्द को लेकर आगे बढ़ने की कोशिश में जुटे है। आपदा से जो दर्द मिला है उसको भूलना इतना आसान नही है लेकिन जीवन आगे बढ़ने का नाम है और पैरा मिलिट्री फोर्स में तैनात राम प्रसाद सती से बेहतर भला इसे कौन समझ सकता है। घर के मलबे में दबी स्मृतियो को टटोलते रामप्रसाद सती को सामान के नुकसान का दुख नही है लेकिन काश परिजन सलामत बच जाते।
अपनी मां बड़े भाई छोटे भाई और छोटे भाई की पत्नी को इस हादसे में खो चुके रामप्रसाद देहरादून में अपने परिवार के साथ रहते है और अब पैंगढ़ गांव से अपनी यादों को लेकर वह देहरादून जा रहे है। घटना में मृत छोटे भाई घनानन्द के दोनों बच्चे भी देहरादून में ही है। पहाड़ों में देवी देवताओं को लेकर विशेष आस्था हमेशा से ही रही है और अब सिर्फ यही एक वजह इस परिवार को इस गांव से जोड़ती नजर आती है।
पैंगढ़ गांव में अस्सी से अधिक परिवार खतरे की जद में है और इनके विस्थापन की तैयारी की जा रही है। सरकारी मदद ओर प्रयासों से नाखुश सती परिवार सरकार से सहयोग की उम्मीद लगाए हुए है।
पहाड़ों में किसी दौर में पानी लाने और देव पूजन के लिए तांबे की गगरियो का इस्तेमाल शुभ माना जाता है और इसे सौभाग्य का प्रतीक समझा जाता है बदलते दौर में पानी की उपलब्धता के चलते अब इनका इस्तेमाल कम हुआ है लेकिन अभी भी अपने दौर को जीने वाले लोग इन सबको यादों में सहेजते है। पैंगढ़ गांव से सती परिवार संग देहरादून जा रही ये तांबे की गागरे वो भावनात्मक विदाई है जो पहाड़ों के दर्द को समेटे हुए है।
पैंगढ़ गांव का भविष्य क्या होगा यह कोई नही जानता । गांव में रहने वाले परिवार अब भी अपनी जमीन से जुड़े है और यहां से विस्थापित होने के नाम से ही एक उदासी छा नजर आ जाती है। पहाड़ों में अक्सर कहा जाता है कि गांव में आया परिवार खुशी दे जाता है लेकिन गांव से गया एक परिवार पूरे गांव को उस उदासी में भिगो जाता है जिसे शायद ही कोई धूप सूखा पाएं।