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एक सच्चे गुरू और सच्चे साधक को कभी भी उसके व्यवहार से नहीं परख सकता कोई भी। व्यवहार कुछ और ही दरसाएगा लेकिन उसके भीतर की खूबसूरती, मनह: स्तिथि को कोई भी पकड़ नहीं पाएगा क्यों की चैतना इतनी संतुलित होती है सब कुछ अधिक होने के बावजूद भी वो कुछ भी अनावश्यक नहीं कर सकता।