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जोशीमठ ही नहीं, पूरे हिमालय पर मंडरा है खतरा

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Down To Earth

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Жыл бұрын

गंगा-यमुना की छाती पर, कंकड़-पत्थर कूट रहे हो
उफ!! तुम्हारी ये खुदगर्जी, चलेगी कब तक ये मनमर्जी
जिस दिन डोलेगी ये धरती, सर से निकलेगी सब मस्ती
महल-चौबारे बह जायेंगे, खाली रौखड़ रह जायेंगे
बूंद-बूंद को तरसोगे जब, बोल व्यापारी-तब क्या होगा?
नगद-उधारी-तब क्या होगा??
आज भले ही मौज उड़ा लो, नदियों को प्यासा तड़पा लो
गंगा को कीचड़ कर डालो
लेकिन डोलेगी जब धरती-बोल व्यापारी-तब क्या होगा?
विश्व बैंक के टोकन धारी-तब क्या होगा?
ऐसे समय में, जब जोशीमठ धंस रहा है, गिरीश चंद्र तिवारी यानी गिर्दा की यह कविता बरबस ही याद आ जाती है। उन्होंने बहुत पहले ही जो चेतावनी दी थी, वो अब सामने आ रही हैं। जोशीमठ का एक बड़ा हिस्सा धीरे-धीरे धरती में समा रहा है। हम बेबस खड़े देख रहे हैं। देश की लगभग सभी बड़ी एजेंसियां जोशीमठ में हो रहे इस भूधंसाव के कारणों की जांच में जुटी है। 860 घरों में दरारें आ चुकी हैं। लोगों को जहां-तहां ठहराया जा रहा है। लोगों की आंखों के सामने उनके जीवन भर की कमाई से बना आशियाना धरती में समा रहा था। आखिर इस आपदा के लिए कौन जिम्मेवार है? अगर इस सवाल का जवाब मिल जाए तो हम केवल जोशीमठ ही नहीं, बल्कि भारत के हिमालयी राज्यों में आ रही आपदाओं का कारण भी समझ आ जाएगा। हिमालयी राज्यों में बढ़ते अनियंत्रित व अनियोजित शहरीकरण की बात हो या हिमालय की पारिस्थितिकी की अनदेखी कर बन रही विकास परियोजनाओं की, भविष्य में इनका परिणाम क्या होने वाला है, इसका अंदाजा जोशीमठ की वर्तमान दशा को देख कर लगाया जा सकता है।
स्थानीय लोग जोशीमठ की वर्तमान हालत के लिए नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन यानी एनटीपीसी के तपोवन विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना और हेलंग-मारवाड़ी बाइपास परियोजना को दोषी मान रहे हैं
इस परियोजना का पावर स्टेशन गांव सेलंग के नीचे बन रहा है, इस गांव में भी घरों में दरारें हैं। 2006--07 में जब एनटीपीसी ने यह परियोजना शुरू की थी तो सेलंग गांव की जमीन का अधिग्रहण किया था। जब काम शुरू हुआ तो मकानों में भी दरारें आई, लेकिन उस समय एनटीपीसी ने जो मुआवजा दिया था, उससे लोगों ने नए घर बनाए, परंतु अब इन नए घरों में भी दरारें आ रही हैं।
अब सवाल उठ रहा है कि आखिर जोशीमठ का भविष्य क्या होगा? यह तो लगभग तय माना जा रहा है कि जोशीमठ का एक बड़ा हिस्सा रहने लायक नहीं रहेगा। यही वजह है कि सरकार ने स्थायी पुनर्वास के लिए जगह की तलाश शुरू कर दी है, परंतु इसको लेकर स्थानीय लोगों की अपनी शर्ते हैं। वे ऐसी जगह चाहते हैं, जो पूरी तरह सुरक्षित हो, साथ ही, जहां रहने पर उनका रोजगार प्रभावित न हो। परंतु पुनर्वास को लेकर सरकार-प्रशासन कितने गंभीर हैं, यह रैणी गांव से समझा जा सकता है। सात फरवरी 2021 को ग्लेशियर टूटने से आई बाढ़ से रैणी गांव के नीचे बना एक हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्लांट क्षतिग्रस्त हो गया था और रैणी को भी नुकसान पहुंचा। इसके कुछ महीने बाद यानी जून 2021 में आई भारी बारिश से गांव के डेढ़ दर्जन घरों के ढहने की आशंका जताई गई थी। इन्हें कहीं और बसाना जाना था, लगभग डेढ़ साल बाद भी ये लोग यहीं गांव में असुरक्षित घरों में रह रहे हैं। और तो और, रैणी के लोगों को जिस गांव सुभाई में बसाना जाना था, वहां भी दरारें आ रही हैं। समुद्र तल से लगभग 6,150 फुट की ऊंचाई पर बसा जोशीमठ से भारत-तिब्बत सीमा काफी नजदीक है और यहां बनी सेना की छावनी भारतीय सेना की महत्वपूर्ण छावनियों में से एक है। जोशीमठ में रह रहे ज्यादातर लोग आसपास के गांवों से आए हैं तो कई ऐसे परिवार हैं, जो उत्तराखंड में हो रही आपदाओं का शिकार होने के बाद जोशीमठ में दोबारा से स्थापित हो चुके हैं, लेकिन एक बार फिर उन्हें विस्थापन का सामना करना पड़ रहा है। कसूर किसका है, जिम्मेवार कौन है, क्या समय रहते इस आपदा को रोका जा सकता था, यह समझना हो तो जोशीमठ के सुनील वार्ड में दुर्गा प्रसाद सकलानी के घर जरूर जाना चाहिए। वहां लगभग 14 महीने पहले दरारें आई थी, अगर सरकारी एजेंसियां सक्रिय हो जाती तो शायद जोशीमठ को बचाया जा सकता था।
अगर आपने ब्रदीनाथ धाम जाना हो या हेमकुंड साहिब, फूलों की घाटी जाना हो या स्नोफॉल का लुप्त लेने औली जाना हो तो जोशीमठ से होकर जाना होता है। यही वजह है कि जोशीमठ में आर्थिक गतिविधियां खूब होती हैं। हर हाथ के पास कोई न कोई काम है, लेकिन इस आपदा ने युवाओं का आत्मविश्वास भी हिला दिया है।
वैसे तो विनाश का कोई पैटर्न नहीं होता, लेकिन फिलहाल जोशीमठ के दायरे में समझना हो तो आप पाएंगे कि जोशीमठ समुद्र तल से 1875 मीटर पर स्थित है। जबकि सुभाई लगभग 2700 मीटर ऊंचाई पर स्थित है, और टिहरी जिले का गांव अटाली, समुद्र तल से 600 मीटर पर स्थित है, लेकिन इन तीनों ही इलाकों में जमीन धंस रही है। अटाली के भूधंसाव के लिए ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन को दोषी माना जा रहा है उत्तराखंड में विनाश की दास्तां लिख रही विकास परियोजनाओं पर सामाजिक कार्यकर्ता सवाल उठाते रहे हैं। तो यह तय मानिए कि यदि धंसते जोशीमठ से उठे सवालों का जवाब सरकारें नहीं देंगी तो इसका खामियाजा उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि सभी हिमालयी राज्यों को झेलना पड़ेगा।

Пікірлер: 31
@Rahul-rajput439
@Rahul-rajput439 Жыл бұрын
लोगों का लालच, बड़े के कायरता, सरकारों का विकास , वैज्ञानियों का ज्ञान, धर्मों का बहिष्कार, Well done अब हल्ला करें हिमालय का विनाश
@trancenut81
@trancenut81 Жыл бұрын
When the Last Tree Is Cut Down, the Last Fish Eaten, and the Last Stream Poisoned, You Will Realize That You Cannot Eat Money
@Clickviralshorts
@Clickviralshorts Жыл бұрын
हिंदी में पत्रकारिता के लिए बहुत बहुत धन्यवाद🙏🙏
@rehmat6
@rehmat6 Жыл бұрын
बहुत शानदार प्रस्तुतिकरण। लेकिन, 'पर्यावरण के लिए विकास से समझौता नहीं करने वालों' को यह समझ में नहीं आएगा। अन्य आपदाओं की तरह जोशीमठ को को भी बहुत जल्द ही भुलाने के प्रयास जारी होंगे।
@vandanaabhade8885
@vandanaabhade8885 Жыл бұрын
That's why our country needs highly educated persons too in the cabinet
@foxearning
@foxearning Жыл бұрын
Bahut hi behtreen report... Kaash ye humare hukmran bhi samja pate ki cheezen bigadne nahi sudharne par focus karna hoga
@bungidevifilms9706
@bungidevifilms9706 Жыл бұрын
बहुत सुंदर रिपोर्टिंग, बहुत ही दुखद पूर्ण एवं भयावह स्थिति।
@SanjayYadav-bk7ve
@SanjayYadav-bk7ve Жыл бұрын
विकास के नाम पर विनाश हो रहा है पहाड़ो में।
@madanlaal7330
@madanlaal7330 Жыл бұрын
बहुत शानदार
@Jeeteshnegi
@Jeeteshnegi Жыл бұрын
Their is enough for man's need but not for man's greed..Gandhi ji was true🙏🙏🙏
@reshmapanwar4840
@reshmapanwar4840 Жыл бұрын
बहुत सुंदर
@shikharjain567
@shikharjain567 Жыл бұрын
Thanks🌹, nice👍 reporting Raju sajvan.. Shiksha jain faridabad
@shikharjain567
@shikharjain567 Жыл бұрын
Shikhar jain
@vasukinagabhushan
@vasukinagabhushan Жыл бұрын
Why there is so much deforestation in Indian Himalayas?
@ritukiran
@ritukiran Жыл бұрын
we need reforestation - read this - Pando the Tree - Pando Populus. Pando is the name of the many-trunked tree system that inspired all this. Pando is, in fact, the scientific name of the largest organism on Earth, the one-tree aspen forest in Utah made up of over 47,000 trunks, and millions of leaves, connected through one root system. just 30 years ago there used to be swathes of land covered in trees the root system held the soil together - we have removed the trees - that's the problem. You see under ideal soil and moisture conditions, roots have been observed to grow to more than 20 feet (6 meters) deep. Early studies of tree roots from the 1930s, often working in easy-to-dig loess soils, presented an image of trees with deep roots and root architecture that mimicked the structure of the top of the tree. The roots have the strength to hold many tonnes of soil together and do I need to explain the help in water replenishment cycles? REFORESTATION IS THE ANSWER.
@jatinnassa9410
@jatinnassa9410 Жыл бұрын
purvaj to pagal the na jo traditional techniques se bnate the,, tum zyada modern ho gaye ho
@ritampriya4743
@ritampriya4743 Жыл бұрын
Apne life me 1 person 100 tree zarur lgayee
@generalstudieshacks4440
@generalstudieshacks4440 Жыл бұрын
Govt zimmedar h bs
@hariomsingh0307
@hariomsingh0307 Жыл бұрын
17:48 चार धाम सड़क परियोजना की सच्चाई और केंद्र सरकार की काली करतूत !
@Irreplaceable777
@Irreplaceable777 Жыл бұрын
Those are people build there houses they are responsible....nd it ll be happening in future too... Respect Nature...🌱🌱🌱
@vks22
@vks22 Ай бұрын
Bund bund ko tarsoge, ........Dilli dehradun me baithe yojankari.......wow
@ritampriya4743
@ritampriya4743 Жыл бұрын
Sabse request hai plzz tress 🌳 lgaye
@Nitin-vy7dl
@Nitin-vy7dl Жыл бұрын
Kahan lagayen lekin 🤔
@sushantbhargav4652
@sushantbhargav4652 Жыл бұрын
Too late
@rawat87
@rawat87 Жыл бұрын
​@@Nitin-vy7dl 😂😂😂 very rational question ! Kaha lagayen 😊
@dharmeshyadav4563
@dharmeshyadav4563 Жыл бұрын
जहां जातिवाद जायदा होता है वहां कुदरत अपना कहर जरूर ढहाती है! NTPC या सरकार की कोई ग़लती नही है!
@badlad2001
@badlad2001 Жыл бұрын
Kuch bhi 😂
@syedmohdgulamasghar8809
@syedmohdgulamasghar8809 Жыл бұрын
🤔😇
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