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कृष्ण भक्त मीराबाई की मौत एक रहस्य है।
राजस्थान के मेड़ता में मीराबाई का जन्म हुआ था। उनके पिता मेड़ता के राजा थे। कहते हैं कि जब मीराबाई बहुत छोटी थी तो उनकी मां ने श्रीकृष्ण को यूं ही उनका दूल्हा बता दिया।
इस बात को मीराबाई सच मान गई। उन पर इस बात का इतना असर हुआ कि वह श्रीकृष्ण को ही अपना सब कुछ मान बैठी और जीवनभर कृष्ण भक्ति करती रहीं।
मीराबाई का विवाह राणा सांगा के पुत्र और मेवाड़ के राजकुमार भोजराज के साथ हुआ। कुछ साल बाद मीरा के पति की मृत्यु हो गयी।
पति की मौत के बाद उस समय प्रचलित प्रथा के अनुसार मीरा को भी भोजराज के साथ सती करने का प्रयास किया गया। लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं हुई। धीरे-धीरे मीरा संसार से ही विरक्त हो गई और साधु-संतों की संगति में कीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगीं।
मीराबाई की कृष्णभक्ति का यह तरीका उनके पति के परिवार को अच्छा नहीं लगा। उनके परिजनों ने मीरा को कई बार विष देकर मारने की भी कोशिश की।पर श्रीकृष्ण की कृपा से वो बच गयी।
जब यातनाएं बरदाश्त से बाहर हो गईं, तो उन्होंने चित्तौड़ छोड़ दिया। वे पहले मेड़ता गईं, लेकिन जब उन्हें वहां भी संतोश नहीं मिला तो कुछ समय के बाद उन्होने कृश्ण-भक्ति के केंद्र वृंदावन का रुख कर लिया।
अधिक मत तो यही है कि यहां पर ही वो कृष्ण भक्ति करते-करते श्रीकृष्ण की मूर्ति में समां गईं। मान्यता है कि मीरा पूर्व जन्म में मथुरा की गोपिका थीं। उन दिनों वह राधा की प्रमुख सहेली थीं और मन ही मन भगवान श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं।
बाद में राधा की इस सहेली का विवाह एक गोप से कर दिया गया। उनकी सास को जब इस बात का पता चला तो उन्हें घर में बंद कर दिया। कृष्ण से मिलने की तड़प में मीरा ने प्राण त्याग दिए। और बाद में मीरा के रूप में मेड़ता के राज के यहां जन्म लिया। मीराबाई ने कृष्ण से अपने इस प्रेम का उल्लेख अपने एक दोहे में भी किया है।
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