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नि:सन्देह मार्कण्डेयपुराण में देवी माहात्म्य की प्रधानता है। इसमें नौ हजार श्लोक होने चाहिए थे किन्तु वर्तमान में उपलब्ध प्रति में ६९०० श्लोक ही उपलब्ध होते हैं। शेष २१०० श्लोक कालिकापुराण को मिला लेने पर पूर्ण हो जाते हैं। संख्या की दृष्टि से तो यह मार्कण्डेयपुराण से सम्बन्धित प्रतीत होता ही है सम्वाद और शाक्तदृष्टि से भी काली से सम्बद्ध होने के कारण भी यह मार्कण्डेयपुराण का अवशिष्टभाग प्रतीत होता है। दोनों के ही वक्ता मार्कण्डेय मुनि हैं। मार्कण्डेयपुराण के मुख्य श्रोता, जैमिनी हैं तो कालिकापुराण के कमठ। पौराणिक कोशकार राणा प्रसाद शर्मा ने अपने कोश के पृष्ठ १०७ पर ९००० श्लोक और ९८ अध्यायों से समृद्ध कालिकापुराण को संख्याबल में मूल मार्कण्डेयपुराण का अपर रूप ही सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। आज उपलब्ध कालिकापुराण में ९० अध्याय ही हैं। जिनमें २१ सौ से कुछ अधिक श्लोक हैं। यदि शेष ८ अध्याय मिल भी जायँ तो उनमें से ७०० श्लोक की सम्भावना कदापि सम्भव नहीं है अतः कालिकापुराण की भागवत से समरूपता की भाँति ही यह भी मार्कण्डेयपुराण की समरूपता के भ्रम में निर्धारित मान्यता के अतिरिक्त कुछ नहीं है।
कालिकापुराण उपर्युक्त विश्लेषण से मार्कण्डेयपुराण से सम्बद्ध एक उपपुराण सिद्ध होता है यद्यपि अन्य सम्बद्ध उपपुराणों की चर्चा में इस सम्बन्ध का उल्लेख नहीं मिलता । सम्भव है शाक्तपुराणों की उपेक्षा के कारण ही इस विवेचन की ओर दृष्टि न गई हो।
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