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पौराणिक कथा के अनुसार भोगीपुर नाम एक नगर था जहां के राजा पुण्डरीक है. इस नगर में अप्सरा, किन्नर और गंधर्व रहते थे. इसके अलावा नगर में अत्यंत वैभवशाली स्त्री ललिता और पुरुष ललित रहा रहते थे. दोनों के बीच बड़ा प्रेम था और वह दोनों एक दूसरे से चाहकर भी अलग नहीं रह पाते थे. एक दिन ललित राजा पुण्डरीक के दरबार में गंधर्वों के साथ गान करने पहुंचा और गाते-गाते उन्हें ललिता की याद आ गई जिसकी वजह से उसकर सुर बिगड़ गया. सुर बिगड़ते ही राजा पुण्डरिक क्रोधित हो गए और उन्हें उन्होंने गुस्से में आकर ललित को राक्षस बनने का श्राप दे दिया. राजा के श्राप देते ही ललित तुरंत विशालकाय राक्षस के रूप में परिवर्तित हो गया. ललित का राक्षस रूपी शरीर आठ योजन का हो गया.
जब उसकी पत्नी ललिता को इस बात के बारे में पता चला तो वह बहुत दुखी हुई और इस समस्या का हल ढूंढने की कोशिश करने लगी. ललिता भी अपने पति ललित के पीछे-पीछे विन्ध्याचल पर्वत पर जा पहुंची, जहां उसे श्रृंगी ऋषि मिले. ललिता ने ऋषि को अपना दुख बताया और उसका उपाय देने का आग्रह किया. श्रृंगी ऋषि ने कहा कि चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी आने वाली है जिसे कामदा एकादशी कहते हैं. इस दिन यदि श्रद्धाभाव के साथ व्रत रखा जाए तो सभी कार्य सिद्ध होते हैं. यदि तुम यह व्रत रख लो तो तुम्हारा पति राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा