Рет қаралды 25,751
14 अक्टूबर 2000 के दिन पिथौरागढ़ के छलिया महोत्सव में जब हजारों की भीड़ को सम्बोधित करते हुए इस लोक गायिका ने अपनी खनकती हुई आवाज़ में गुनगुनाना शुरू किया तो श्रोता जैसे मंत्रमुग्ध हो गए. गुमनामी के अंधेरों से निकलकर पहाड़ की उस बेटी ने अपनी गायकी की दूसरी पारी का आगाज पूरी धमक के साथ किया.
इस महोत्सव की जो खबर अगले दिन के दैनिक जागरण में प्रकाशित हुई उसमें स्थानीय पत्रकार रमेश गड़कोटी ने लिखा था, ‘तीन दिवसीय छलिया महोत्सव किसी और मायने में सफल रहा हो या नहीं, लेकिन इसके आयोजकों ने 21 साल से गुमनामी के अंधेरे में रह रही कबूतरी देवी को मंच पर लाकर महोत्सव की सार्थकता सिद्ध कर दी.’
ये महोत्सव सार्थक हुआ था Kabutari Devi नाम की उस लोक गायिका की पुनर्स्थापना से जिन्हें पहाड़ में लोक संगीत के सबसे मजबूत हस्ताक्षरों में गिना गया, जिन्हें उत्तराखंड की ‘तीजन बाई’ और बेगम अख़्तर’ कहा गया, जिनकी आवाज़ में पहाड़ का पूरा सांस्कृतिक दर्शन बसता था और जिन्हें Uttarakhand की पहली और एकमात्र लोक गायिका का ख़िताब, ख़ुद पहाड़ी समाज ने सौंपा था.
#folk #uttarakhand #garhwali #kumaun #pahad
Kumauni Song,
Folk Singer,
Garhwali Song,
Pahadi Song,
Pahadi Singer,
Folk Singer,
Uttarakhandi,
Uttarakhandi Folk Music
Join this channel to support baramasa:
/ @baramasa
बारामासा को फ़ॉलो करें:
Facebook: / baramasa.in
Instagram: / baramasa.in
Twitter: / baramasa_in