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रण में जो कुछ भी हुआ मैं उसको ना दोहराऊंगा
मैं सत्य कहने आ गया हूं सत्य कह के जाऊंगा
मैं चुनूंगा दुर्योधन भले दुर्योधन तुम ना चुनो
पर मुझ अधर्मी से प्रथम तुम धर्म क्या है वह सुनो
के धर्म और अधर्म की बुनियाद ही गर कर्म है
और कर्म से निर्मल है जो अगर उसके संग में धर्म है
तो कह दो काना इस जहां में दान करना पाप है
और इस जहां में सूत के घर जन्म लेना श्राप है
कह दो क्षत्रियों को जाके बाणों को तुम फेंक दो
कह दो क्षत्रियों जाके बाणों को तुम फेंक दो
और रण में खीची पर्तयंचा पे जात रख कर देखलो
अरे वो युद्ध रन पे था ही नही वो रण ही अंतर मन में था
योग्यता की लाश बनकर मैं गिर गया उसी रन पे था
श्राप और वचनों के जब मैं मर रहा था ढेर पर
तब कर्ण को इस मार डाला भगवानों ने घेर कर
कौरवों से होके भी कोई कर्ण को ना भूलेगा
जाना जिसने मेरा दुख हो कर्ण कर्ण बोलेगा
साम दाम दंड भेद सूत्र मेरे नाम का गंगा माँ का लाडला मै खामखां बदनाम था
कौरवो से हो के भी कोई कर्ण को ना भूलेगा जाना जिसने मेरा दुख वो कर्ण कर्ण बोलेगा
भास्कर पिता मेरे, हर किरण मेरा स्वर्ण है वर्ण में अशोक मै, तु तो खाली पर्ण है
कुरुक्षेत्र की उस मिट्टी में, मेरा भी लहू जीर्ण है देख छानके उस मिट्टी को कण कण में कर्ण है
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