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#NiranjanSaar
करूँ बेनती दोउ कर जोरी। अर्ज़ सुनो राधास्वामी मोरी ॥ 1 ॥
सत्त पुरुष तुम सतगुरु दाता । सब जीवन के पितु और माता ॥ 2 ॥
दया धार अपना कर लीजे। काल जाल से न्यारा कीजे ॥ 3॥
सतयुग त्रेता द्वापर बीता। काहु न जानी शब्द की रीता ॥ 4 ॥
कलजुग में स्वामी दया विचारी । परगट करके शब्द पुकारी ॥ 5॥
जीव काज स्वामी जग में आये। भौ सागर से पार लगाये ॥ 6॥
तीन छोड़ चौथा पद दीन्हा। सत्तनाम सतगुरु गत चीन्हा ॥ 7 ॥
जगमग जोत होत उजियारा। गगन सोत पर चन्द्र निहारा ॥ 8 ॥
सेत सिंहासन छत्र बिराजे। अनहद शब्द ग़ैब धुन गाजे ॥ 9 ॥
क्षर' अक्षर' निःअक्षर' पारा। बिनती करे जहाँ दास तुम्हारा ॥10॥
लोक अलोक' पाऊं सुख धामा। चरन सरन दीजे बिसरामा ॥ 11 ॥
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