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क्या कभी ईश्वर भी रोता है ? नहीं, बिल्कुल नहीं। लेकिन ईश्वर जब हम मनुष्यों के बीच हम मनुष्यों जैसी लीला के लिए आता है तो वो हमारे जैसे हर भाव को जीता है। मेरे भुवनमोहन कन्हैया का मन तो वैसे भी भावनाओं का असीमित आकाश है ।
परिस्थितियों की मॉंग पर प्रभुता की ज़िम्मेदारी निभाने के लिए भुवन-मोहिनी बाँसुरी को एक तरफ़ रखकर चक्र उठाने के लिए अभिशापित मेरे कन्हैया का दुःख केवल उनकी निजी पीड़ा भर नहीं है बल्कि यह गीत प्रभुता के, शक्ति के, सामर्थ्य के, लोकप्रियता के शीर्ष पर बैठे हर सामर्थ्य-संपन्न व्यक्ति की नियति है।
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