Рет қаралды 191,807
।धरोहर।
इन दिनों अल्मोड़ा के किसी भी कोने में आप हों तो नंदा देवी मंदिर प्रांगण से आती हुई एक तीव्र, संवेदनशील आवाज अपनी ओर आकर्षित करती है।माल रोड होते हुए लाला बाजार की संकरी बाजार से होते हुए जैसे ही हम नंदा देवी प्रांगण में पहुँचते हैं तो मंच पर ,भीड़ की आवाजों पर भारी होती युगल स्वरों का पता दीखता है।
संत राम और आनंदी देवी कुमाउनी लोकगीत की किसी छपेली या झोड़े के बोल हुड़के की थाप पर गा रहे होते हैं।मेरे ख्याल से नंदा देवी कौतिक के पुराने स्वरूप के एकलौते निशान यही हैं।संत राम और आनंदी देवी दोनों दृष्टिहीन दिव्यांग हैं।गरीबी,अभाव,बेबसी से संघर्ष करती आवाज़ में लोकगीतों की खनक फिर भी बरकरार है।एक हाथ से हुड़के में जानदार थाप लगाते हैं तो मधुर कंठ से गाते हुए किसी अनंत में खो जाते से प्रतीत होते हैं,आनंदी देवी साथ में गाते हुए मार्मिक भाव भंगिमाएं बनाती हैं।
ग्राम पिपई,रीठगार ,धौलछीना के निवासी संत राम बताते हैं की पैदा होने के तीसरे महीने उनकी आँखों की रोशनी चली गयी। माँ बाप ने ऐसे में उन्हें अकेले छोड़ दिया,आमा ने भात का माड़ खिला के जीवन बचाया।धीरे धीरे कंटर बजाकर गीत गाने शुरू किए। जीवन चलता रहा और मन छपेली,जोड़, मालूशाही, रमौल में घुलता चला गया। नंदा देवी के मंदिर में पहले दफा गीत गा रहे थे तो आकाशवाणी के स्वर्गीय शंकर उप्रेती जी ने हुनर को पहचाना और संत राम ने रेडियो से पहला गीत गाया
"दलिया मसूरा....दलिया मसूरा
सास ब्वरियों झे झिकौर भयो मयूर की कसोरा ...."
इसी बीच गुरूड़ाबाँज के पास भ्वेना गाँव की आऩंंदी देवी जीवन संगिनी बन गई, आनंदी देवी की एक आँख पैदाईश से ही खराब है,दूसरी ईलाज के अभाव में पिछले दिनों। डॉक्टर का कहना है की अब इन आँखों में ज्योति नहीं आ सकती।जब पूछा की जीवन कैसे चलता है तो हँसते हुए कहती हैं कि आस पास के लोग दान करते हैं ,गुजारा चल जाता है।खुद भी अंदाजे अंदाजे में रोटी साग,दाल भात बना लेती हैं। इतना कहते ही वो गीत गाने लगती हैं
"गाड़ी चलली चली रोड मां
पंछी बासली बाँजा बोट मा....."
गाते गाते लोग चारों ओर से घेर लेते हैं,कोई कुछ पैसे दे जाता है,कोई ठहरकर गीत सुनने लगता है,कोई मेरे जैसा नासमझ, वीडियो बनाने लगता है।आप भी जाएं। नंदा देवी प्रांगण आजकल इनसे गुलजार है। कुछ देर ठहरकर सुनिएगा ज़रूर ।ये धरोहर कौतिक की सबसे पहली निशानी है।