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लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम या लिट्टे के संस्थापक वेलापुल्लई प्रभाकरन की आज 64वीं वर्षगांठ है. प्रभाकरन कुछ लोगों के लिए स्वतंत्रता सेनानी थे, तो कुछ लोगों के लिए क्रूर चरमपंथी.
जिस शख़्स को एक राष्ट्राध्यक्ष और एक पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या, श्रीलंका के एक और राष्ट्रपति की हत्या का प्रयास, सैकड़ों राजनीतिक हत्याओं, पच्चीसियों आत्मघाती हमलों, हज़ारों लोगों और सैनिकों की मौत का ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है, उसके लिए एक बात तो आँख मूंद कर कही जा सकती है कि वो निहायत ही ख़तरनाक व्यक्ति था जिसमें जीवट की कमी नहीं थी.
ओसामा बिन लादेन के आदेश पर न्यूयॉर्क का वर्ल्ड ट्रेड सेंटर गिराए जाने से पहले प्रभाकरन के लोगों ने कोलंबो के भीड़ भरे इलाके में इसी नाम की उतनी ही प्रतीकात्मक इमारत नेस्तनाबूद की थी.
लेकिन ओसामा की तरह प्रभाकरन एक अमीर माँ बाप की संतान नहीं थे और न ही उन्होंने इस तरह के दुस्साहसी कामों को अंजाम देने के लिए किसी दूसरे देश की शरण ली थी. न ही ऐसे काम करने के लिए उन्हें किसी धर्म से प्रेरणा मिली थी. उनका एकमात्र धर्म था तमिल राष्ट्रवाद.
एक दशक के भीतर उन्होंने एलटीटीई को मामूली हथियारों के 50 से कम लोगों के समूह से 10 हज़ार लोगों के प्रशिक्षित संगठन में तब्दील कर दिया था जो एक देश की सेना तक से टक्कर ले सकता था.
वो दो भारतीयों को अपना प्रेरणास्रोत मानते थे - एक थे 1931 में फांसी पर झूलने वाले भगत सिंह और दूसरे थे आज़ाद हिंद फ़ौज बनाने वाले सुभाष चंद्र बोस.
तस्वीरें: गेटी इमेज़स, रायटर्स, ईपीए, बीबीसी