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माता दुर्गा को प्रसन्न करने और उनकी भक्ति में डूबने के लिए लोग माता रानी का जागरण या जगराता करते हैं. इस आयोजन में माता भक्त भक्तिमय गीतों के जरिये अपने ऊपर कृपा दृष्टि बनाये रखने की प्रार्थना करते हैं. इस दौरान माता की चौकी लगाई जाती है, जिसमें माता रानी का दरबार फूलों द्वारा सजाया जाता है. जागरण के दौरान लोग रात में जाग कर माता के भजन गाते हैं.
मातारानी के जागरण में तीन देवी और देवता की पूजा की जाती है और वे तीन देवी - देवता हैं माता सरस्वती, निंद्रा माता एवं हनुमान जी. मां सरस्वती को ज्ञान, साहित्य, संगीत और कला की देवीस्वरुप पूजा जाता है. माता सरस्वती का सम्बन्ध बुद्धि से है जो इन्सान को ज्ञानी बनाती है.सरस्वती के आलावा मां निंद्रा देवी की पूजा करना भी अनिवार्य है. किदवंती है कि जो लोग निंद्रा पर विजय पा लेते हैं उसे ही मां सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है. जागरण में बजरंगबली का पूजन भी अनिवार्य है. इनकी पूजन के बिना जागरण अपूर्ण माना जायेगा.
जागरण में तारावती की कथा सुनना अनिवार्य है, रात भर जागने के बाद सूर्योदय से पहले तारा रानी की कथा कहना व सुनना अनिवार्य है तभी जागरण पूर्ण माना जायेगा.
कलश स्थापना की विशेषता और जागरण का महत्त्व
दरबार में कलश की स्थापना होती है. इसे देवी-देवता की शक्ति, तीर्थ स्थान आदि का प्रतीक माना जाता है. कलश स्थापना से सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं की पूर्ति होती है. कलश हमेशा तांबे, मिट्टी व पीतल का शुभ माना जाता है. मान्यता है कि कलश के मुख में विष्णुजी, कंठ में शंकर जी और मूल में ब्रह्मा जी हैं. मध्य भाग में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं.