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माया से अलग चलने का आनन्द

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Yatharth Geeta - ASHRAM

Yatharth Geeta - ASHRAM

6 жыл бұрын

माया से अलग चलने का आनन्द - निर्मल मन की इष्टोन्मुख प्रवृति - भजन और विरह। माया क्या है? ‘गौ’ शब्द की वैदिक व्याख्या।
Aastha TV - Episode 81
गीतोक्त ज्ञान ही विशुद्ध मनुस्मृति- गीता आदिमानव महाराज मनु से भी पूर्व प्रकट हुई है- ‘इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।’ (४/१) अर्जुन! इस अविनाशी योग को मैंने कल्प के आदि में सूर्य से कहा तथा सूर्य ने मनु से कहा। मनु ने उसे श्रवण कर अपनी याददाश्त में धारण किया; क्योंकि श्रवण की गयी वस्तु मन की स्मृति में ही रखी जा सकती है। इसी को मनु ने राजा इक्ष्वाकु से कहा। इक्ष्वाकु से राजर्षियों ने जाना और इस महत्त्वपूर्ण काल से यह अविनाशी योग इसी पृथ्वी में लुप्त हो गया। आरम्भ में कहने और श्रवण करने की परम्परा थी। लिखा भी जा सकता है- ऐसी कल्पना नहीं थी। मनु महाराज ने इसे मानसिक स्मृति में धारण किया तथा स्मृति की परम्परा दी। इसलिये यह गीतोक्त ज्ञान ही विशुद्ध मनुस्मृति है। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- अर्जुन! वही पुरातन योग मैं तेरे लिये कहने जा रहा हूँ। तू प्रिय भक्त है, अनन्य सखा है। अर्जुन मेधावी थे, सच्चे अधिकारी थे। उन्होंने प्रश्न-परिप्रश्नों की शृंखला खड़ी कर दी कि- आपका जन्म तो अब हुआ है और सूर्य का जन्म बहुत पहले हुआ है। इसे आपने ही सूर्य से कहा, यह मैं कैसे मान लूँ? इस प्रकार बीस-पच्चीस प्रश्न उन्होंने किये। गीता के समापन तक उनके सम्पूर्ण प्रश्न समाप्त हो गये, तब भगवान ने, जो प्रश्न अर्जुन नहीं कर सकते थे, जो उनके हित में थे, उन्हें स्वयं उठाया और समाधान दिया। अन्तत: भगवान ने कहा- अर्जुन! क्या तुमने मेरे उपदेश को एकाग्रचित्त हो श्रवण किया? क्या मोह से उत्पन्न तुम्हारा अज्ञान नष्ट हुआ? अर्जुन ने कहा- नष्टो मोह: स्मृतिर्लब्धा । (१८/७३)- भगवन्! मेरा मोह नष्ट हुआ। मैं स्मृति को प्राप्त हुआ हूँ। केवल सुना भर नहीं अपितु स्मृति में धारण कर लिया है। मैं आपके आदेश का पालन करूँगा, युद्ध करूँगा। उन्होंने धनुष उठा लिया, युद्ध हुआ, विजय प्राप्त की, एक विशुद्ध धर्म-साम्राज्य की स्थापना हुई और एक धर्मशास्त्र के रूप में वही आदि धर्मशास्त्र गीता पुन: प्रसारण में आ गयी।
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© Shri Paramhans Swami Adgadanandji Ashram Trust.

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