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माझ महला ४ ॥ मधुसूदन मेरे मन तन प्राना ॥ हउ हरि बिनु दूजा अवरु न जाना ॥ कोई सजणु संतु मिलै वडभागी मै हरि प्रभु पिआरा दसै जीउ ॥१॥
अर्थ: परमात्मा मेरे मन का आसरा है, मेरे शरीर का (ज्ञानेंद्रियों का) आसरा है। परमात्मा के बिना किसी और को मैं (जीवन का आसरा) नहीं समझता। सौभाग्य से मुझे कोई गुरमुख सज्जन मिल जाए और मुझे प्यारे प्रभु का पता बता दे।1।
हउ मनु तनु खोजी भालि भालाई ॥ किउ पिआरा प्रीतमु मिलै मेरी माई ॥ मिलि सतसंगति खोजु दसाई विचि संगति हरि प्रभु वसै जीउ ॥२॥
अर्थ: हे मेरी मां! (इसलिए कि) कैसे मुझे प्यारा प्रीतम प्रभु मिल जाए मैं ढूंढ के और ढूंढवा के अपना मन खोजता हूँ अपना शरीर खेजता हूँ। साधु-संगत में (भी) मिल के (उस प्रीतम का) पता पूछता हूँ (क्योंकि वह) हरि प्रभु साधु-संगत में बसता है।2।
मेरा पिआरा प्रीतमु सतिगुरु रखवाला ॥ हम बारिक दीन करहु प्रतिपाला ॥ मेरा मात पिता गुरु सतिगुरु पूरा गुर जल मिलि कमलु विगसै जीउ ॥३॥
अर्थ: (हे प्रभु!) हम तेरे नादान बच्चे हैं। हमारी रक्षा कर। (हे प्रभु!) मुझे प्यारा प्रीतम गुरु मिला (वही विकारों से मेरी) रक्षा करने वाला है। पूरा गुरु सत्गुरू (मुझे इस तरह प्यारा है, जैसे) मेरी मां और मेरा पिता है (जैसे) पानी को मिल के कमल फूल खिलता है (वैसे ही) गुरु को (मिल के मेरा हृदय गद्-गद् हो जाता है)।3।
मै बिनु गुर देखे नीद न आवै ॥ मेरे मन तनि वेदन गुर बिरहु लगावै ॥ हरि हरि दइआ करहु गुरु मेलहु जन नानक गुर मिलि रहसै जीउ ॥४॥२॥
अर्थ: हे हरि! गुरु का दर्शन किए बिनां मेरे मन को शांति नहीं आती। गुरु से विछोड़ा (एक ऐसी) पीड़ा (है, जो सदा) मेरे मन में मेरे तन में लगी रहती है। हे हरि! (मेरे पर) मेहर कर (और मुझे) गुरु मिला।
हे दास नानक! (स्वयं-) गुरु को मिल के (मन) खिल उठता है।4।2।
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