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krishna dhyan shlok
krishna mantra
mantra mugdh kar dene wale shlok
कृष्णप्रेममयी राधा राधाप्रेममयो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥
श्रीराधारानी, भगवान श्रीकृष्ण में रमण करती हैं और भगवान श्रीकृष्ण, श्रीराधारानी में रमण करते हैं, इसलिये मेरे जीवन का प्रत्येक-क्षण श्रीराधा-कृष्ण के आश्रय में व्यतीत हो।
कृष्णस्य द्रविणं राधा राधायाः द्रविणं हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥
भगवान श्रीकृष्ण की पूर्ण-सम्पदा श्रीराधारानी हैं और श्रीराधारानी का पूर्ण-धन श्रीकृष्ण हैं, इसलिये मेरे जीवन का प्रत्येक-क्षण श्रीराधा-कृष्ण के आश्रय में व्यतीत हो।
अहो बकीयं स्तनकालकूटं,
जिघांसया पाययदप्यसाध्वी।
लेभै गतिम् धात्र्युचितां ततोन्यं-
कं वा दयालुं शरणं व्रजेम् ।।
अर्थात, स्तनों में कालकूट विष लगाकर स्तन-पान से बालक की हत्या करने की आकांक्षा रखने वाली पूतना को भी जिन्होंने अत्यन्त दुर्लभ गति प्रदान की, ऐसे परम दयालु, अकारण करुण, करुणा-वरुणालय, शरणागत-वत्सल प्रभु अकिंचनाति अकिंचन से भी प्रेम करने वाले हैं, अपना लेने वाले हैं। बाल-हत्यारिणी पूतना अपावन वाञ्छा रखती हुई भी एक बार प्रभु-पादोन्मुख हो महत् गति को प्राप्त हुई।
अहो बकीयं स्तनकालकूटं,
जिघांसया पाययदप्यसाध्वी।
लेभै गतिम् धात्र्युचितां ततोन्यं-
कं वा दयालुं शरणं व्रजेम् ।।
अर्थात, स्तनों में कालकूट विष लगाकर स्तन-पान से बालक की हत्या करने की आकांक्षा रखने वाली पूतना को भी जिन्होंने अत्यन्त दुर्लभ गति प्रदान की, ऐसे परम दयालु, अकारण करुण, करुणा-वरुणालय, शरणागत-वत्सल प्रभु अकिंचनाति अकिंचन से भी प्रेम करने वाले हैं, अपना लेने वाले हैं। बाल-हत्यारिणी पूतना अपावन वाञ्छा रखती हुई भी एक बार प्रभु-पादोन्मुख हो महत् गति को प्राप्त हुई।
वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात् पीताम्बरादरुणबिम्बफलाधरोष्ठाः पूर्णेन्दुसुन्दरमुखादरविन्दनेत्रात् कृष्णात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने ॥
जिनके करकमलों में बंसी शोभायमान है , जिनके सुंदर शरीर की आभा नये बादलों जैसी घनश्याम है , जिनका सुंदर मुख पूर्ण चन्द्र जैसा है , जिनके नेत्र , कमल की भांति बहुत सुंदर है , जिन्होंने पीताम्बर धारण किया हुआ है , जिनके अधरोष्ठ अरुणोदय जैसा , माने उदित होते हुए सूर्य के लाल फल के रंग जैसा है , ऐसे श्रीकृष्ण भगवान के सिवा और कोई परम तत्व है , यह मैं नहीं जानता ।
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने । प्रणत: क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः।।
वासुदेवनन्दन परमात्मा स्वरूपी भगवान श्रीकृष्णको वंदन है , उन गोविंदको पुनः नमन है , वे हमारे कष्टोंका नाश करें !
मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम् ।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम् ॥
जिनकी कृपा से गूंगे बोलने लगते हैं , लंगड़े पहाड़ों को पार कर लेते हैं , उन परम आनंद स्वरूप श्रीमाधव की मैं वंदना करता हूँ ॥
किरीटकेयूरमहार्हनिष्कै-
र्मण्युत्तमालङ्कृतसर्वगात्रम्।
पीताम्बरं काञ्चनचित्रनद्ध
मालाधरं केशवमभ्युपैमि ॥
जिनके मस्तकपर किरीट , बाहुओंमें भुजबन्ध और गलेमें बहुमूल्य हार शोभा पा रहे हैं , मणियोंके सुन्दर गहनोंसे सारे अङ्ग सुशोभित हो रहे हैं और शरीरपर पीताम्बर फहरा रहा है - सोनेके तारद्वारा विचित्र रीतिसे बँधी हुई वनमाला धारण किये , उन भगवान् श्रीकृष्णचन्द्रका करता हूँ । ' मैं मन - ही - मन चिन्तन
वन्दे श्रीकृष्णदेवं मुरनरकभिदं वेदवेदान्तवेद्यं
लोके भक्तिप्रसिद्धं यदुकुलजलधौ प्रादुरासीदपारे ।
यस्यासीद् रूपमेवं त्रिभुवनतरणे भक्तिवच्च स्वतन्त्रं
शास्त्रं रूपं च लोके प्रकटयति मुदा यः स नो भूतिहेतुः ॥
जो इस जगत्में भक्तिसे ही प्राप्त होते हैं , जिनका तत्त्व वेद और वेदान्तके द्वारा ही जाननेयोग्य है , जो अपार यादवरूपी समुद्रमें प्रकट हुए थे , थे , मुर और नरकासुरको मारनेवाले उन भगवान् श्रीकृष्णको मैं सादर सप्रेम प्रणाम करता हूँ । जो इस संसारमें अपने स्वरूप तथा शास्त्रको प्रसन्नतापूर्वक प्रकट किया करते हैं तथा सचमुच ही जिनका स्वरूप इस त्रिभुवनको तारनेके लिये भक्तिके समान स्वतन्त्र नौकारूप है , वे भगवान् श्रीकृष्ण हमलोगोंका कल्याण करें ।
कृष्णं नारायणं वन्दे कृष्णं वन्दे व्रजप्रियम्
कृष्णं द्वैपायनं वन्दे कृष्णं वन्दे पृथासुतम् ॥
कृष्ण ही नारायण भगवान् हैं। कृष्ण ही व्रजप्रिय, कृष्ण ही द्वैपायन व्यास हैं और कृष्ण ही अर्जुन हैं। सब-के-सब कृष्ण ही हैं।
फुल्लेन्दीवरकान्तिमिन्दुवदनं वर्हावतंसप्रियं श्रीवत्सांकमुदारकौस्तुभधरं पीताम्बरं सुन्दरम् ॥
गोपीनां नयनोत्पलार्चिततनुं गोगोपसंघावृतं
गोविन्दं कलवेणुवादनपरं दिव्यांगभूषणं भजे ॥
प्रफुल्ल नीलकमलके समान जिनकी श्याम मनोहर कान्ति है , मुखमण्डलकी चारुता चन्द्रबिम्बको भी विलज्जित करती है , मोरपंखका मुकुट जिन्हें अधिक प्रिय है , जिनका वक्ष स्वर्णमयी श्रीवत्सरेखासे समलंकृत है , जो अत्यन्त तेजस्विनी कौस्तुभमणि धारण करते हैं और रेशमी पीताम्बर पहने हुए हैं , गोपसुन्दरियोंके नयनारविन्द जिनके श्रीअंगोंकी सतत अर्चना करते हैं , गौओं तथा गोपकिशोरोंके संघ जिन्हें घेरकर खड़े हैं तथा जो दिव्य अंगभूषासे विभूषित हो मधुरातिमधुर वेणुवादनमें संलग्न हैं , उन परम सुन्दर गोविन्दका मैं भजन करता हूँ ॥
कस्तूरी तिलकं ललाट पटले वक्ष: स्थले कौस्तुभं।
नासाग्रे वरमौक्तिकं करतले वेणु: करे कंकणं॥
सर्वांगे हरि चन्दनं सुललितं कंठे च मुक्तावली।
गोपस्त्रीपरिवेष्टितो विजयते गोपाल चूडामणि:॥
जिनके मस्तकपर कस्तूरीका तिलक है , वक्षःस्थलमें कौस्तुभमणि है , नासिकाग्रमें अति सुन्दर मोतीका आभूषण ( बुलाक ) है , करतलमें वंशी है , हाथों में कंकण हैं , सम्पूर्ण शरीरमें हरिचन्दनका लेप हुआ है और कण्ठमें मनोहर मोतियोंकी माला है , व्रजांगनाओंसे घिरे हुए ऐसे गोपालचूडामणिकी बलिहारी है ॥
वसुदेवसुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् ।
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगदुरुम् ॥