मुद्दा | क्या सामुदायिक वन अधिकार मिलने से खुश हैं आदिवासी

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Down To Earth

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Жыл бұрын

ओडिशा के कंधमाल जिले में उगादी पर्वत पर एक छोटा सा गांव है. इस गांव का नाम है लोयनडीया। यह गांव वैसे तो राजस्व गांव नहीं है, बल्कि जंगल का गांव है परन्तु यहां के 13 घरों के लोग 2012 से काफी खुश हैं। ये खुश इसलिए हैं, क्योंकि इनको 10 साल पहले समुदायिक वन संसाधन अधिकार यानी Community Forest resource right का पट्टा मिल गया था, जिसके बाद से ये लोग अपने जंगल को अत्याधिक दोहन से बचाने में सक्षम रहे।
तो क्या है ये सामुदायिक वन संसाधन अधिकार? ये किन लोगों को मिलता है ? और इस के फायदे क्या हैं?
मुद्दा के इस एपिसोड में हम आज वन अधिकारों के बारे में बात करेंगे और जानेंगे कि ये अधिकार आदिवासी और वनवासियों के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं। 2006 में लागू हुए वन अधिकार अधिनियम (Forest right act), जंगल में रहने वाले आदिवासी समुदायों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के वन संसाधनों के अधिकारों को मान्यता देता है।. ये समुदाय इन संसाधनों पर आजीविका, आवास और अन्य सामाजिक-सांस्कृतिक जरूरतों के लिए निर्भर हैं । इस अधिनियम में खेती और निवास के अधिकार शामिल हैं जिन्हें आमतौर पर व्यक्तिगत अधिकार माना जाता है. सामुदायिक अधिकार जैसे मवेशियों की चराई, मछली पकड़ना और जंगलों में पानी के स्त्रोतों तक पहुंच, आदिवासियों के लिए आवास अधिकार, खानाबदोश और चरवाहों की पारंपरिक मौसमी संसाधन तक पहुंच, जैव विविधता का उपयोग आदि शामिल हैं।इन के अलावा एफआरए धारा 3(1)(i) के प्रावधान, जिन्हें सामुदायिक वन संसाधन अधिकार (CFRR) कहा जाता है, का दायरा और भी व्यापक है। वे न केवल वन समुदायों के वन उत्पादों तक पहुंचने और उनका उपयोग करने के अधिकारों को मान्यता देते हैं, बल्कि उनके "पारंपरिक रूप से स्थायी उपयोग के लिए संरक्षित किये गए किसी भी सामुदायिक वन संसाधन की रक्षा, पुनरुत्पादन, संरक्षण और प्रबंधन के अधिकार" को भी मान्यता देते हैं. लोएंडीऑ गांव को भी यही अधिकार मिला है। इस अधिकार के तहत, वे अपने जंगल की स्वयं रक्षा करते हैं। पेट्रा कन्हरा, जिन्होंने 1982 mein ye गांव बसाया था कहते हैं कि पहले उन्हें जंगल से लघु वन-उपज लाने के लिए जंगल विभाग को रिश्वत देनी पड़ती थी और उसके बावजूद भी वन कर्मी हस्तक्षेप करते थे। उन के गांव में बांस काटने का ठेका दिए जाया था, जिस से उनके जंगल का काफी दोहन हो रहा था। वन अधिकार मिलने के बाद अब उन के गांव की ग्राम सभा और सामुदायिक वन प्रबंधन समिति मिल के जंगल की रक्षा करते हैं और बांस की कटाई बंद कराने के बाद अब 10 वर्षों में उनका जंगल फिर से हरा भरा हो गया है। कंधमाल जिले के कांटना गांव की जसोदा कन्हरा भी यही बात दोहराती हैं। इस गांव को भी CFRR 2012 में ही मिल गया था और तब से यहां रहने वाले कोंध आदिवासी समुदाय के लोग काफी खुश है. वे कहते हैं कि वन विभाग के लोगो का संरक्षण का तरीका केवल पेड़ों तक सीमित हैं और वे छोटे पौधों और कंध-मूलों पर ध्यान नहीं देते थे जिस के कारण इस गांव में कांड-मूल की उपज काफी कम हो गई थी। पिछले 10 वर्षों में गांव के लोगो ने फिर से इन सबकी उपज बढ़ाने का काम किया है जिस कारण अब जंगल की जमीन भी ज़्यादा उपजाऊ हो गई है। क्योंकि छोटे पौधे होने से मिट्टी का कटाव कम होने लगा है। वे अब अत्यधिक वन लघु उपज जैसे महुआ, चिरोंजी, मशरुम आदि बाज़ार में बेच के कुछ अतिरिक्त आय भी पा लेते हैं। ओडिशा ने मार्च 2022 तक प्राप्त 6,068 CFRR दावों में से 4,098 को स्वीकार कर लिया है। यही कारण कि ओडिशा और छत्तीसगढ़ के कई गांव अब इस अधिकार की मांग कर रहे हैं।
20 जून, 2022 को छत्तीसगढ़ के उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व के 18 गांवों के निवासियों ने व्यस्त राष्ट्रीय राजमार्ग 130C को अवरुद्ध कर दिया। गरियाबंद जिले के 18 गांवों में से एक नागेश के अर्जुन नायक कहते हैं, “हमें जीवित रहने के लिए वन संसाधनों की आवश्यकता है। टाइगर रिजर्व होने के नाते, हम पहले से ही कई प्रतिबंधों के बिना जीवन जी रहे हैं। बिजली की आपूर्ति नहीं है, चरागाह भूमि तक पहुंच न के बराबर है और हम निर्माण कार्य नहीं कर सकते हैं।” छत्तीसगढ़ ने बड़ी संख्या में सीएफआरआर दावों को स्वीकार किया है। इसने 2019 में अपना पहला CFRR दावा धमतरी जिले का जबरा गाँव mein स्वीकार किया। कुल मिलाकर, पिछले चार वर्षों में, इसने अपने 25 जिलों में 3,903 गाँवों और चार नगर पंचायतों से CFRR दावे प्राप्त किए। इनमें से उसने 3,782 आवेदन स्वीकार किए हैं। भारत के कई राज्य जैसे गुजरात और महाराष्ट में भी यह अधिकार काफी पहले ही दे दिए गए थे, परन्तु अब इन राज्यों में कई कारणों से इन अधिकारों को ले कर ज़्यादा काम नहीं हो पा रहा है। ये अधिकार ऐतिहासिक अन्याय को सुधरने के लिए एक बड़ी पहल हैं। ये जैव विविधता के सरंक्षण के तौर पर भी एक अच्छी नीति है क्योंकि जानकारों का मानना है कि जहां जंगल आदिवासियों के हाथों में होता है वहां उन का संरक्षण भी बेहतर होता है। आईपीबीईएस-9 की 'सस्टेनेबल यूज ऑफ वाइल्डलाइफ' रिपोर्ट में कहा गया है कि स्थानीय के लोग 87 देशों में 38 मिलियन वर्ग किमी से अधिक भूमि का प्रबंधन करते हैं, जो उच्च जैव विविधता मूल्य वाले 40% स्थलीय संरक्षित क्षेत्रों में है। इस कारण से कई पर्यावरणविद भी वन अधिकारों का समर्थन करते हैं। बशर्ते कि सही मायने में लागू किया जाए।

Пікірлер: 9
@user-nm1ql4yy4l
@user-nm1ql4yy4l Жыл бұрын
Very important information, thanks.
@Prabhjeet
@Prabhjeet Жыл бұрын
Awesome, thank you🌸
@shlokstrong
@shlokstrong Жыл бұрын
I just love this mudda series knowledge + promotion of hindi language.. keep it up and going down to earth
@videosyoumustwatch7681
@videosyoumustwatch7681 Жыл бұрын
❤️
@kanchansaw9249
@kanchansaw9249 Жыл бұрын
Thank you ma'am for this information
@to_the_point2910
@to_the_point2910 Жыл бұрын
Good information...tq down to earth
@patelabhishek7966
@patelabhishek7966 Жыл бұрын
Hum nhi jante iske bare m, bahot sukhriya jankari k liye
@sanskratiparmar4176
@sanskratiparmar4176 Жыл бұрын
It was your video that made me subscribe to Down to earth Mam.... 🌻
@jamesstjames1289
@jamesstjames1289 Жыл бұрын
Don’t put foreign videos up I can’t understand
RASHTRIYA MUDDE: FOREST LAND RIGHTS
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Dhyeya IAS
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УГАДАЙ ГДЕ ПРАВИЛЬНЫЙ ЦВЕТ?😱
00:14
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НРАВИТСЯ ЭТОТ ФОРМАТ??
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