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इस हफ्ते टिप्पणी में धृतराष्ट्र-संजय संवाद की वापसी हो रही है. हस्तिनापुर का दरबार सजा था. आर्यावर्त में लोकतंत्र का पर्व चल रहा था. इसलिए लोक की पूछ बढ़ गई थी. यही वक्त होता है जब लोक अपने तंत्र के साथ डील करने की स्थिति में होता है. लोक जमकर अद्धा-पौव्वा में डील कर रहा था. इसीलिए दरबार में लोक के पितामह धृतराष्ट्र प्रसन्नचित्त नजर आ रहे थे.
दूसरी तरफ देश में बहुत सारी चीजें राम भरोसे हो चली हैं, उनमें से एक शिक्षा व्यवस्था भी है. लेकिन जंबुद्वीप में योगीराज के उद्गम के बाद हालात बदल रहे हैं. देखने में आया है कि वहां की शिक्षा व्यवस्था अब जय श्रीराम भरोसे हो गई है.
दूसरी तरफ हुड़कचुल्लू खबरिया चैनलों का संसार है जो अपनी घामड़ता और कूढ़मगजी से देश को उजियार किए हुए हैं. आज हम इन्हीं में से एक टाइम्स नाउ की नाविका कुमार की बात विस्तार से करेंगे. इनकी खासियत ये है कि इनका अपना कोई मत नहीं है, या तो इनके मुंह से कांग्रेस और राहुल कुछ कहते हैं या फिर इनके मुंह से मोदी या भाजपा कुछ कहती है, इनके मुंह से इनकी अपनी कोई बात नहीं निकलती.
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