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मानसिक स्वास्थ्य की बात करने से पहले हमें अपनी आंतरिक बीमारियों का पता होना चाहिए, बिना ये जाने कि हम किन वैचारिक त्रुटियों से ग्रस्त हैं हम मानसिक तौर से स्वस्थ होने का दावा नहीं कर सकते। जिस आंतरिक केंद्र से हमारी सारी क्रियाएं उठती हैं, हमें उस केंद्र को देखना होगा की वहां बीमारी छिपी है या बोध स्थापित है। जितना संकुचित और सीमित हमने अपने जीवन को बनाकर रखा है, जहाँ हम अपनी ही चिंताओं, दुख और ख्यालों से घिरे हुए हैं उतने ही हम बीमार हैं। एक निरंतर प्रतिस्पर्धा की भावना, महत्वकांशी होना, खुदको मनोरंजन से घेरे रखना, अपने को शांति के पलों में पाकर असहज हो जाना, सादगी सामने आते ही मुँह चिढ़ा लेना, ये सब एक बीमार मन के लक्षण हैं। जितना हम अपनी बीमारी के पास आएंगे, उससे संपर्क बना कर रखेंगे उतना ही हम स्वास्थ्य की और बढ़ेंगे।
Chapters
00:00 Intro
00:13 खुदको स्वस्थ घोषित करने से पहले बीमारी का ज्ञान ज़रूरी है
07:46 संकुचित रहना ही हमारी बीमारी है
14:44 क्या बीमारी हमारे चारों ओर नहीं है?
19:23 बीमारी के बीज
23:49 'मैं' की अनुपस्थिति ही स्वास्थ्य की उपस्थिति है
25:53 जीवन की गति 'मैं' नहीं बोध संभालेगा