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कोई भी मानवीय भावना जब अपने प्रकर्ष पर पहुँचती है तो बहुधा उसके संप्रेषण के लिए शब्दों की भूमिका गौण हो जाती है। परम प्रसन्नता के क्षणों में आँखों से ढलका एक आँसू भी आनंद का सूचक हो सकता है। क्रोध, उदासी या प्रेम की सघनता कई बार मौन के माध्यम से भी बहुत कुछ बोल जाती है। रामकथा के प्रसंग भी हमें यही सिखाते हैं कि यदि भाव की गहराई और हृदय का विस्तार प्रभु राम जैसा अनन्य हो तो जंगल के पशु-पक्षियों और मूक पौधों तक से भी संवाद सहज ही संभव हो सकता है। 🙏🏻
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