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. ★ पारमार्थिक स्वार्थ ★
जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज
. द्वारा स्वरचित पद
'जोइ स्वारथ पहिचान, धन्य सोइ'
. की व्याख्या
. लेक्चर भाग-1
एक व्यवहार है
कि दूसरे के मरने पर उसको देखने जाओ
उसके साथ श्मशान घाट जाओ
ताकि तुम्हारे मरने पर वो तुमको देखने आवे
और तुम्हारी बॉडी के साथ श्मशान घाट जाये।
यानी मरने के बाद की फ़िक्र आपको है
जी हाँ।
और मरने के पहले की नहीं है?
कितना बड़ा आश्चर्य है!
अरे, मरने के बाद
चाहे वो कोई साथ जाये चाहे न जाये
वो तो बॉडी है, शरीर है, मिट्टी है
उसको चाहे गीध-कौवे खायें
चाहे उसको चन्दन में जलाओ
उससे क्या फ़र्क पड़ता है।
वो तो इतना निन्दनीय हो जाता है शरीर
कि चाहे वो जगद्गुरु का बाप हो
जिसकी पूजा करते थे आप
उसमें बदबू आने लगेगी।
घर में नहीं रख सकते आप।
लेकिन फिर भी हम लोग बड़ी चिन्ता रखते हैं
हर एक के मरने पे जाया करते हैं
टाइम व्यय करते हैं, अनावश्यक जोकरी करते हैं
मुँह लटकाके बैठते हैं।