सभी साधर्मी मुमुक्षु जीवों को सादर जय जिनेन्द्र नरेंद्र कुमार जैन जयपुर 🙏🙏🙏
@rkj021116 күн бұрын
डैमेज कंट्रोल, ललितपुर का, रोज कुछ क्लीपिंग्स। जो पहले मुमुक्षुओं के बीच अपने आप को गुरुदेव के अनुयाई के रूप में स्थापित करने के लिए कहा गया था।
@vrishalimehta511815 күн бұрын
जन्म जयंती क्यूँ कहते है ? जब की जन्म दिन को ही जयंती कहते है l
@arvindkumarjain33442 сағат бұрын
इसमें गलत क्या है? थोड़ा स्वाध्याय भी कर लिया करो.
@rajkumarsinghai979616 күн бұрын
आध्यात्मिक सत्पुरुष कानजी स्वामी स्वयं को अव्रती श्रावक मानते थे । क्या यह उचित है कि एक अव्रती श्रावक का इतना महिमा मंडन उचित है ?
@globaljainonenessinitiative14 күн бұрын
आपको अव्रती दिखते हैं और हमको तारणहार। नज़र नज़र का फेर है।
@rajkumarsinghai979614 күн бұрын
आगम अनुसार सच्चे देव शास्त्र और निर्ग्रन्थ दिगम्बर मुनिराज गुरु ही व्यवहार से जीव को तारणहार है । शेष अपनी अपनी नज़र है । कौन किसको गुरु मानता है अपनी अपनी मान्यता है कुन्दकुन्दादि आचार्य भगवंतों की महिमा से अधिक आप उन्हें महिमावंत मानते हैं तो मानें ।
@globaljainonenessinitiative14 күн бұрын
@@rajkumarsinghai9796 अव्रती तारणहार (कल्याण में निमित्त) नहीं हो सकता यह कहां लिखा है??
@rajkumarsinghai979613 күн бұрын
@@globaljainonenessinitiative आगम में सम्यक दर्शन में निमित्त सच्चे देव और निर्ग्रन्थ दिगम्बर जैन मुनिराज गुरु का उपदेश का ही उल्लेख है यदि अव्रती श्रावक भी सम्यक दर्शन में निमित्त का कहीं भी उल्लेख नहीं है सम्यक दर्शन के बिना कोई भी संसार से तिर नहीं सकता सो तारणहार तो सच्चे देव शास्त्र और निर्ग्रन्थ दिगम्बर मुनिराज गुरु ही हैं बाकी अपनी अपनी मान्यता अपनी अपनी नज़र ।
@globaljainonenessinitiative13 күн бұрын
@@rajkumarsinghai9796 देवऋद्धि दर्शन और वेदना को तक सम्यग्दर्शन में निमित्त माना गया है। धन्य है आपको, कौनसे आगम पढ़ रहे हैं आप?? अपने मन की कहना सो खूब कहो, आगम का अवर्णवाद क्यों कर रहे हैं।