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श्रीजगन्नाथ-तोटकाष्टकम्
(तोटक = द्वादशाक्षर विशिष्ट संस्कृत छन्द)
नव-नीरद-सुन्दर-कान्ति-तनो !
शुभ- दारब-विग्रह- रम्य हनो ।
अतिबेल-समाकुल महीवने,
जगदीश ! कृपां कुरु दीन-जने।। १ ।।
नये बादलों की तरह सुंदर-दीप्ति - विशिष्ट हे शरीर वाले !
हे मंगलमय काष्ठ मूर्ति-विशिष्ट सुन्दर-गाल वाले!
हे असीम-परि व्याप्त! हे बसुधाधिप ! हे जगन्नाथ !
मेरी भाँति दरिद्र में दया करो ॥१॥
असिताचल- मंडन ! चक्रधर!
कमलाधव! माधव! दीर्घकर !
गरुड़ासन ! बत्सल भक्त-जने !
जगदीश ! कृपां कुरु दीन-जने। । २ ।।
हे नील पर्वत - शोभन ! हे चक्रधर! हे लक्ष्मी के स्वामी!
हे लक्ष्मी-बल्लभ ! हे दीर्घबाहु ! हे गरुड़-बाहन !
हे भक्त-जन-स्नेही ! हे जगन्नाथ!
मेरी तरह दरिद्र में दया करो || २ ||
सुर-नायक ! चक्रित नेत्र- हरे !
पुरु-चन्दन-चर्चित- नेत्रवरे !
परिरक्षक वीक्षक दुःखि-जने,
जगदीश ! कृपां कुरु दीन-जने।।३।।
हे देवाग्रणी! हे गोल-आँख वाले हरि!
हे पर्य्याप्त-चन्दन-लेपित-सुंदर- शरीर!
हे दरिद्रों के सर्वथा रक्षक और दर्शक जगन्नाथ।
मेरी तरह दरिद्र में दया करो ॥३॥
जय दानव मर्दन! नन्दत।
विधि-शंकर-वासव-सुर-नूत!
सतताकुल किल्विष संहरणे,
जगदीश कृपां कुरु दीन-जने। ||४||
हे दैत्यनाशक नन्दकुमार तुम्हारी जय हो।
हे ब्रह्मा शिव-इन्द्रादिदेव के नमस्कृत!
पाप नाश करने में हमेशा व्याकुल हे जगन्नाथ
मेरी तरह दरिद्र में दया करो ||४||
गल- लम्बित - कौस्तुभ -दाम-वर!
जयदेव बचोञ्चित-वस्त्रधर!
श्रुति-संच-संस्तुत- नित्य-मुने!
जगदीश ! कृपां कुरु दीन-जने। ||५||
हे गले में लम्बित मालाधारी श्रेष्ठ पुरुष
हे भक्त जयदेवोक्त (गीतगोविन्द खंडुआ) वस्त्रधारी !
वेद-संगृहीत स्तुतियों द्वारा ऋषियों के नित्य आराध्य
हे जगन्नाथ! मेरी तरह दरिद्र में दया करो ||५||
भव-बन्धन-मोचन-भक्तरते !
मुख दर्शन-खंडित-दुःखतते!
प्रणतार्ति हरोज्ज्वल-नीलमणे!
जगदीश! कृपां कुरु दीन-जने। ६।।
हे संसारिक बंधन के मुक्तिदाता हे भक्तासक्त
श्रीमुख दर्शनमात्रे हे दुख-दुर्गतियों के नाशक
हे प्रणतों के दुखहारक! हे उज्ज्वल-नीलमणितुल्य श्री
जगन्नाथ! मेरी तरह दरिद्र में दया करो ||६||
ससुभद्र! सुभद्रक! पार्थ- सखे
घृत-वामन-विग्रह! दैत्य-सखे !
गणनाथ वपुर्धर! जन्मदिन,
जगदीश! कृपां कुरु दीन जने। ||७||
हे सुभद्रा के साथ वर्तमान! हे कल्याणकर! हे अर्जुन-बंधु !
राक्षस के यज्ञ में हे वामन रूपधारी !
जन्मदिन में हे गजानन रूपधारी जगन्नाथ!
मेरी तरह दरिद्र में दया करो ||७||
रथ-मण्डन-मण्डित-मन्द-गते!
वर-हाटक-भूषण- कान्ति-तते !
बहु-सेवक-सेवित! सर्वदिने,
जगदीश! कृपां कुरु दीन-जने। ॥१८॥
सुंदर रथ पर विराजित हे धीर-मंथर गामी!
हे श्रेष्ठ स्वर्णालंकार मंडित शोभाधारी हमेशा
बहु-सेवकों के द्वारा सेवित हे जगनाथ!
मेरी तरह दरिद्र में दया करो ॥८॥
नरसिंह बराह धराधिपते!
जन-मानस हारक! सर्व-गते !
विनिवेदनकं कुल-पूर्व-मणे,
जगदीश ! कृपां कुरु दीन-जने।।९।।
इति श्री पंडित कुलमणि मिश्र-विरचितं श्रीजगन्नाथ-तोटकाष्टकं संपूर्णम् ।
हे नृसिंह! हे बराह! हे बसुधाधिपति !
हे भक्त जनों के हृदय-हारक ! हे सर्वत्र विराजित !
पंडित कुलमणि का निवेदन ग्रहण करो हे जगन्नाथ!
मेरी तरह दरिद्र में दया करो ।।९।।
इस प्रकार पंडित कुलमणि मिश्र विरचित श्री जगन्नाथ-तोटकाष्टक समाप्त हुआ।
Song Credits :
Song : Sri Jagannath Totkashtakam
Lyrics: Pandit Kulmani Mishr
Singer : Madhvi Madhukar
Music Label : SubhNir Productions
Music Director : Nikhil Bisht, Rajkumar
Video Editing : Pawan Sharma
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