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सिद्धांत सार :
विश्व के पाँचवें मूल जगद्गुरु एवं काशी विद्वत परिषत् द्वारा जगद्गुरूत्तम की उपाधि से विभूषित श्री कृपालु जी महाराज को 'सनातनवैदिकधर्मप्रतिष्ठापन सत्सम्प्रदाय परमाचार्य' की उपाधि से भी अलंकृत किया गया है। इस दृष्टि से श्री महाराज जी के श्रीमुख से निकले दिव्य श्रीवचन ही वास्तविक सनातन वैदिक धर्म के उद्घोषक हैं। श्री महाराज जी ने हम कलियुगी जीवों के कल्याणार्थ समस्त वेद शास्त्रों का सार अपने दिव्य प्रवचनों में अत्यंत सरल एवं रोचक शैली में प्रस्तुत किया है।
यह वीडियो दिनांक 'श्री कृष्ण जन्माष्टमी (2008)' के अवसर पर श्री महाराज जी द्वारा रँगीली महल, बरसाना धाम में दिये गये एक विशेष प्रवचन का अंश है।
श्री महाराज जी के श्रीमुख से-
"ये 'कृष्ण' शब्द का अर्थ क्या होता है जी?
कृष्ण। ये कृष् धातु से बना है। हमारे यहाँ शब्द बनते हैं धातु से। कृष् धातु से बना।
कृषिर्भूवाचकः शब्दः णश्चनिर्वृत्तिवाचकः।
तयोरैक्यं परंब्रह्म कृष्ण इत्यभिधीयते॥
वेद कह रहा है।
गोपालतापनीयोपनिषद् का पहला मन्त्र।
यानी सत् चित् आनंद स्वरूप जो पर्सनालिटी है, उसको कृष्ण कहते हैं। और उसका काम क्या है?
कर्षति सर्वेषां चेतांसि...
जो सबके मन को खींच ले जबरदस्ती। यहाँ तक कि अपने मन को भी खींच ले।
विस्मापनं स्वस्य च सौभगर्द्धे:।
(३.२.१२, भागवत)
रूप देखि आपनार कृष्णेर होय चमत्कार।
आस्वादिते उठे मने काम॥
अपने स्वरूप को देखकर और श्रीकृष्ण सोचते हैं, काश! मैं लड़की होती और अपने आपको देखती ऐसे, कितना सुख मिलता।
ब्रह्मा, विष्णु, शंकर कोई हो…
उमा, रमा, ब्राह्मणी सबको एक दृष्टि में खींच लेने वाले। श्रीकृष्ण।"
-जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज
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