सबसे बड़ा पाप और पुण्य कौन सा है l स्वर्ग और नर्क । दैवी और आसुरी स्वभाव । भागवतगीत ।

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Spritual : Sanatan Sanskriti

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जानिए कौन से पाप ओर पुण्य निर्धरित करते है स्वर्ग मिलेगा या नर्क। दैवी और आसुरी स्वभाव । भागवतगीत ।
🌟 भागवत गीता अध्याय 16 - दैवासुर सम्पद्विभाग योग 🌟
इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दैवी और आसुरी गुणों के बारे में बताया है। इसमें दैवी गुणों का वर्णन, आसुरी गुणों का वर्णन और दोनों के बीच के अंतर को स्पष्ट किया गया है।
📜 **अध्याय सारांश**:
1. दैवी गुण: निर्भयता, शुद्ध हृदय, आत्मसंयम, दान, अहिंसा, सत्य आदि।
2. आसुरी गुण: अहंकार, दंभ, घमंड, क्रोध, अज्ञान आदि।
3. दैवी और आसुरी सम्पत्ति के बीच अंतर और उनके परिणाम।
यह अध्याय हमें सिखाता है कि हमें अपने जीवन में किन गुणों को अपनाना चाहिए और किन गुणों से दूर रहना चाहिए ताकि हम मोक्ष की प्राप्ति कर सकें।
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एक समय की बात है, जब गुरुजी ने अपने शिष्यों को गरुड़ पुराण (garud puran) सुनाने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा, "गरुड़ पुराण (garud puran in hindi) में कई कहानियाँ (garud puran stories) हैं जो हमें जीवन और मृत्यु के रहस्यों के बारे में सिखाती हैं।"
उन्होंने गरुड़ पुराण की कथा (garud puran katha in hindi) प्रारंभ की, जिसमें गरुड़ (garuda purana) और विष्णु भगवान का संवाद था। इस पुराण में नरक (garud puran kis karan se jana padta hai nark) जाने के कारण (garud puran nark jane ke karan) और स्वर्ग (swarg aur narak kaisa hota hai) का वर्णन भी किया गया है।
गुरुजी ने बताया कि अच्छे कर्मों से स्वर्ग और बुरे कर्मों से नरक प्राप्त होता है। उन्होंने शिष्यों को भागवत गीता (bhagwat geeta) के उपदेश (shri krishna bhagwat geeta updesh) भी सुनाए, जिसमें श्री कृष्ण ने अर्जुन को जीवन के सत्य और धर्म का मार्ग दिखाया था।
"गरुड़ पुराण के अध्याय (garud puran adhyay) और भगवद गीता के उपदेश (shree krishna bhagwat geeta updesh) दोनों ही हमारे जीवन में मार्गदर्शन का कार्य करते हैं," गुरुजी ने कहा। उन्होंने पूरी गरुड़ पुराण (complete garud puran) की कथा समाप्त की और शिष्यों से कहा कि वे इसे ध्यान से सुनें और अपने जीवन में इसका पालन करें।
इस प्रकार, गुरुजी ने शिष्यों को गरुड़ पुराण की कथा (garud puran ki katha) सुनाई और उन्हें धर्म और कर्म के महत्व को समझाया। यह कथा (garun puran ki katha) शिष्यों के जीवन में एक महत्वपूर्ण सीख बन गई।

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