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नेहरू की चिट्ठियाँ सीरीज़ की यह 6वीं चिट्ठी है ,इस चिट्ठी में पंडित नेहरू के बाजार और उद्दम नियोजन के सहारे और कई मुद्दों पर बात की है
' लोकतंत्र का मतलब राजनीतिक समानता है। इसका मतलब प्रगतिशील आर्थिक समानता भी है। हमारा घोषित उद्देश्य एक ऐसा समाज विकसित करना है जहाँ कोई बड़ा मतभेद न हो और जहाँ सभी को अवसर मिले।
कोई भी निहित स्वार्थ और निहित विशेषाधिकार समाज की ऐसी योजना के साथ फिट नहीं बैठते। और फिर भी, हमारा संविधान और उससे भी ज़्यादा हमारी आर्थिक और सामाजिक संरचना और रीति-रिवाज़ कई तरह के विशेषाधिकार और निहित स्वार्थों की रक्षा करते हैं। इतिहास के संदर्भ में उनके लिए कुछ औचित्य है, लेकिन हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि वे कालबाह्य हैं और लोगों को लगातार परेशान करते हैं। आर्थिक दृष्टि से, वे शायद ज़्यादा फ़र्क न डालें, लेकिन वे संघर्ष और हताशा का माहौल बनाते हैं और इस तरह हमारे काम के आड़े आते हैं। मुझे कोई संदेह नहीं है कि पुराने विशेषाधिकार के इन अवशेषों को जाना होगा। सवाल यह है कि क्या हम लोगों के रूप में इस समस्या को शांतिपूर्ण और सहयोगात्मक तरीके से हल करने की समझदारी रखते हैं। '
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