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जब भी सरकार यह दावा करे कि ग़ुलामी की मानिसकता से आज़ादी दी जा रही है, आप बस इतना हिसाब करें कि आपके अधिकारों को कितना मज़बूत किया जा रहा है? राज्य के बनाए कानून से आप मज़बूत होते हैं या सरकार मज़बूत होती है? पुलिस को आप 90 दिनों तक जेल में रखने का अधिकार दे दें, किसी प्रदर्शन के हिंसक हो जाने पर आतंकी कार्रवाई कह दें, किसी अधिकारी के फैसले को गलत बता कर सात साल के लिए जेल में डाल दें, क्या इस तरह के प्रावधानों में आपको भारत की आत्मा दिखती है? या उसी ब्रिटिश हुकूमत की आत्मा भूत बनकर घूमती नज़र आ रही है जो हर बात में जेल में डाल देने का अधिकार अपने पास रखना चाहती थी।जब जनता हर दिन बोलने, लिखने और विरोध-प्रदर्शन करने के मामले में कमज़ोर होती जाए, प्रदर्शन करना संगीन अपराध बना दिया जाए, तब क्या जनता गुलामी की मानिसकता से कभी आज़ाद हो सकती है? India Penal Code, हिंदी नाम भारतीय दंड संहिता, का नाम बदल कर भारतीय न्याय संहिता कर दिया गया है। भारतीय दंड संहिता को भारतीय न्याय संहिता कर देने से गुलामी की मानिसकता कैसे दूर हो जाती है, आप कहेंगे इसमें न्याय पर ज़ोर है लेकिन इसकी धाराओं को देखिए तो सरकार ने अधिक से अधिक सज़ा देने के लिए पुरानी धाराओं में नए अपराध जोड़े गए हैं और सज़ा देने के स्कोप का विस्तार किया गया है।
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/ @ravishkumar.official
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