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सिद्धियां कौन-कौन सी होती हैं | सिद्धि कैसे प्राप्त करें । अष्ट सिद्धियां क्या होती हैं । siddhiyan
ऐसी कौनसी सिद्धी है , जिससे दूसरे के मन की बात को जान सकते हैं ? कौनसी सिद्धि से किसी का भी भविष्य जान सकते हैं ? कौनसी सी सिद्धी से किसी को भी अपने वश में कर सकते हैं ? पानी पर चल सकते हैं , हवा में उड़ सकते हैं । इसके अलावा भी तंत्र , मंत्र , यंत्र आदि से संबंधित बहुत सी सिद्धियां होती हैं । जिन्हें चाहे तो मनुष्य प्राप्त कर सकता है ।
अणिमा महिमा चैव लघिमा गरिमा तथा ।
प्राप्तिः प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चाष्ट सिद्धयः ।।
अर्थात् अणिमा , महिमा, लघिमा, गरिमा तथा प्राप्ति प्राकाम्य इशित्व और वशित्व ये सिद्धियां "अष्टसिद्धि" कहलाती हैं।
भगवान राम के प्रिय भक्त हनुमान जी को अष्ट सिद्धि और नौ निधि के दाता के रूप में जाना जाता है। हनुमान चालीसा की एक चौपाई भी है 'अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता, अस वर दीन जानकी माता"। अर्थात हनुमान जी की भक्ति से व्यक्ति के जीवन में आठ प्रकार की सिद्धियां और नौ प्रकार की निधियां साकार हो जाती है। हलांकी हनुमान जी के पास इन अष्ट सिद्धियों के अलावा और भी कयी प्रकार की सिद्धियां थीं ।
सिद्धियां क्या होती हैं ? कौन-कौन सी होती हैं और इन्हें किस प्रकार प्राप्त किया था सकता है ? हम लोग कैसे असानी से इन्हें प्राप्त कर सकते हैं ।
'सिद्धि' शब्द का तात्पर्य सामान्यतः ऐसी पारलौकिक और आत्मिक शक्तियों से है जो तप और साधना के द्वारा प्राप्त होती हैं । हिन्दु धर्म शास्त्रों में अनेक प्रकार की सिद्धियां वर्णित हैं जिन मे आठ सिद्धियां अधिक प्रसिद्ध है जिन्हें 'अष्टसिद्धि' कहा जाता है और जिन का वर्णन उपर्युक्त श्लोक में किया गया है । सबसे पहले हम अष्ट सिद्धियों के बारे में जान लेते हैं , इसके बाद हम 16 प्रकार की अन्य सिद्धियों के बारे भी जानेंगें ।
1. अणिमा : 'अणिमा' का अर्थ होता है अपने शरीर को अणु से भी छोटा कर लेना। इस सिद्धि के बल पर हनुमानजी कभी भी अति सूक्ष्म रूप धारण कर कहीं भी विचरण कर लेते थे और इसका किसी को भान भी नहीं होता था। एक बार जब श्रीराम के आदेश पर हनुमानजी को समुद्र पार कर लंका में प्रवेश करना था और चारों तरफ राक्षसों का पहरा था, ऐसे में उन्होंने अति सूक्ष्म रूप धारण कर संपूर्ण लंका का निरीक्षण किया था। अति सूक्ष्म होने के कारण हनुमानजी को न तो राक्षस देख पाए और न ही लंका के लोग।इस सिद्धि का उपयोग हालांकि उन्होंने समुद्र पार करते वक्त सुरसा नामक राक्षसी द्वारा रास्ता रोकने के दौरान भी किया था। वे उसके मुंह में जाकर पुन: बाहर निकल आए थे।
2. महिमा : 'महिमा' का अर्थ अपने शरीर को असीमित रूप में बड़ा कर लेना। जब हनुमानजी समुद्र पार करके लंका जा रहे थे, तब बीच रास्ते में सुरसा नामक राक्षसी ने उनका रास्ता रोक लिया। उस समय सुरसा को परास्त करने के लिए हनुमानजी ने स्वयं का रूप विशालकाय कर 100 योजन तक बड़ा कर लिया था। इस विशालता के कारण सुरसा डर गई थी।हालांकि हनुमानजी ने अपना यह विशाल रूप कई बार दिखाया। अशोक वाटिका में माता सीता को श्रीराम की वानर सेना के शक्तिशाली होने का विश्वास दिलाने के लिए भी उन्होंने इस सिद्धि का प्रयोग करके माता सीता को चमत्कृत कर दिया था।
3. गरिमा : 'गरिमा' का अर्थ है असीमित रूप से भारी हो जाना। इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी स्वयं का भार किसी विशाल पर्वत के समान कर लेते थे। हालांकि रामायण काल में तो उन्हें इसकी कभी आवश्यकता पड़ी हो या नहीं, लेकिन महाभारत काल में जरूर पड़ी थी।गरिमा सिद्धि का उपयोग हनुमानजी ने महाभारत काल में भीम के समक्ष किया था। एक समय भीम को अपनी शक्ति पर घमंड हो गया था। उस समय भीम का घमंड तोड़ने के लिए हनुमानजी एक वृद्ध वानर का रूप धारण करके रास्ते में अपनी पूंछ फैलाकर बैठे हुए थे। भीम ने देखा कि एक वानर की लंबी पूंछ मार्ग में पड़ी हुई है, वृद्ध वानर ने संपूर्ण रास्ता रोककर रखा है। तब भीम ने वृद्ध वानर से कहा कि वे अपनी पूंछ तुरंत ही रास्ते से हटाएं।भीम के ये वचन सुनकर वृद्ध वानर ने कहा कि मैं वृद्धावस्था के कारण अपनी पूंछ हटा नहीं सकता, आप स्वयं हटा दीजिए। इसके बाद भीम वानर की पूंछ हटाने लगे, लेकिन पूंछ टस से मस नहीं हुई। भीम ने पूरी शक्ति का उपयोग किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। अंतत: भीम को समझ में आ गई कि यह कोई साधारण वानर नहीं है। भीम को अपनी शक्ति का घमंड जाता रहा।
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