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बद्रीनाथ धाम स्थित नर और नारायण पर्वत के रहस्य क्या हैं?
जो जाए बदरी, वह ना आए उदरी।
यानी जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है उसे पुनः माता के उदर यानी गर्भ में फिर नहीं आना पड़ता ,इसीलिए कहते हैं कि मनुष्य को जीवन में कम से कम एक बार बद्रीनाथ के दर्शन जरूर करना चाहिए ।बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड में अलकनंदा नदी के किनारे बसा है ।बद्रीनाथ धाम को शास्त्रों में दूसरा बैकुंठ धाम कहा जाता है ।एक बैकुंठ क्षीरसागर है और विष्णुजी का दूसरा निवास बद्रीनाथ है जो धरती पर मौजूद है ।बद्रीनाथ धाम दो पर्वतों के बीच बसा है जिसे नर नारायण पर्वत कहा जाता है। कहते हैं, यहां पर भगवान विष्णु के अंश नर और नारायण ने तपस्या की थी। नर अगले जन्म में अर्जुन और नारायण श्री कृष्ण हुए।
विष्णु के 24 अवतारों में से एक नर और नारायण ऋषि कि यह तपोभूमि है ।उनके तप से प्रसन्न होकर केदारनाथ में शिव प्रकट हुए थे ।दूसरी ओर बद्रीनाथ धाम है जहां भगवान विष्णु विश्राम करते हैं ।
कहते हैं सतयुग में बद्रीनाथ धाम की स्थापना नारायण ने की थी। भगवान केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद बद्री क्षेत्र में भगवान नर नारायण का दर्शन करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
नर और नारायण पर्वत श्रृंखलाओं के बीच स्थित Badrinath Dham, भगवान शिव और मां पार्वती से जुड़ा है मंदिर का इतिहास
Badrinath Dham Door Open बदरीविशाल के इस धाम के इतिहास को लेकर भी भक्तों के बीच कई मान्यताएं व कथाएं प्रचलित हैं। नर और नारायण पर्वत श्रृंखलाओं के बीच मंदिर नीलकंठ पर्वत की पृष्ठभूमि में स्थित है।
भगवान बदरीविशाल के धाम बदरीनाथ के कपाट छह माह के लिए खोल दिए गए हैं। नर और नारायण पर्वत श्रृंखलाओं के बीच मंदिर नीलकंठ पर्वत की पृष्ठभूमि में स्थित है। बदरीविशाल के इस धाम के इतिहास को लेकर भी भक्तों के बीच कई मान्यताएं व कथाएं प्रचलित हैं।
यहां पर विष्णु भगवान के रूप बद्रीनारायण की प्रतिमा स्थापित है। यह मूर्ति 1 मीटर (3.3 फीट) लंबी है और शालिग्राम से निर्मित है। माना जाता है कि इस मूर्ति को आदि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में पास में स्थित नारद कुण्ड से निकालकर स्थापित किया था। इस मूर्ति को भगवान विष्णु की आठ स्वयं प्रकट हुई प्रतिमाओं में से एक भी माना जाता है।
शास्त्रों के मुताबिक भगवान विष्णु काफी लंबे समय से शेषनाग पर विश्राम कर रहे थे। तभी नारद ने उन्हें जगा दिया। नारद जी ने भगवान से कहा आप लंबे समय से विश्राम कर रहे हैं। इससे लोगों के बीच आपका उदाहरण आलस के लिए दिया जा रहा है।
यह सुनकर भगवान विष्णु तपस्या के लिए एक शांत स्थान ढूंढने निकल पड़े। वह हिमालय की ओर चल पड़े, तब उन्होंने बदरीनाथ को देखा। जब विष्णु वहां पहुंचे तो उन्होंने एक कुटिया में भगवान शिव और माता पार्वती को विराजमान देखा।
इसके बाद भगवान विष्णु ने एक बच्चे का अवतार लिया और बदरीनाथ के दरवाजे पर रोने लगे। बच्चे के रोने की आवाज सुनकर माता पार्वती ने बच्चे को गोद में उठा लिया और घर के अंदर ले आईं। जब बच्चा से गया तो भगवान शिव और माता पार्वती पास के एक कुंड में स्नान करने चले गए।
जब वह वापस आए तो देखा कि कुटिया का दरवाजा अंदर से बंद था। माता पार्वती उस बच्चे को जगाने की कोशिश की, लेकिन द्वार नहीं खुला। तब शिव और पार्वती वहां से चले गए और भगवान विष्णु ने यहां वास कर लिया।
माता लक्ष्मी ने धर लिया था बद्री वृक्ष का रूप
बदरीनाथ की एक और कथा प्रचलित है। जिसके मुताबिक एक बार भगवान विष्णु तपस्या करने के लिए हिमालय चले गए। जब वह ध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो वहां बहुत बर्फ गिरने लगी। इस हिमपात में भगवान विष्णु ढक चुके थे। उनकी ऐसी हालत देख माता लक्ष्मी परेशान हो गईं और भगवान विष्णु के पास जाकर बद्री वृक्ष का रूप धर लिया।
तपस्या के दौरान भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और बर्फ से बचाने के लिए माता लक्ष्मी ने भी कई वर्षों तक कठोर तपस्या की। जिस पर भगवान ने उनसे कहा कि तुमने भी मेरे बराबर तपस्या की है। आज से इस धाम में मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जाएगा। आज से मुझे बद्री के नाथ-बदरीनाथ के नाम से जाना जाएगा।
🕉️भगवान बद्रीनाथ नारायण के दर्शन🕉️
मन में सुकून और शांति दिलाने वाला है बद्रीनाथ नारायण के दर्शन
यहां आकर सारी दुनिया को मैं भूल चुकी हूं अब और मन नहीं करता है यहां से जाने का
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• मैं लेडिश होकर कर सकती...
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/ @aashaon_ke_ram_hamare