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सुभाष चन्द्र बोस की और भी चिट्ठियाँ हैं जो पब्लिक डोमेन में उपलब्ध हैं, जिसे पढ़कर मैं अधिक से अधिक लोगों का ध्यान खींच सकता था। जिसकी भाषा में कई बार आज़ादी और तुम मुझे खून दो जैसे शब्द आए होते। लेकिन नहीं, मुझे ध्यान खींचने से ज़्यादा अपने भीतर ध्यान मगन लोगों की इच्छा है, मैं वही बनाना चाहता हूँ वही देखना। मैं चाहता हूं न किसी को खून माँगना पड़े न देना। मुझे सुभाष जी का जीवन इतना आकर्षक लगता है की मन तो होता है सब बता दिया जाए।,ज्यादातर चीजें जानकारिया हर जगह उपलब्ध हैं। यह चिट्ठी आपको बताएगी की कितना कुछ ऐसा है जिसे जानने की इच्छा बची रहे तो हम संवेदनशील और जागरूक मनुष्य बने रहेंगे। कल्पनाओं में सरल और सहज़ सुभाष को आप उनकी गढ़ी गयी छवि से बाहर निकलकर जानें इसी उद्देश्य से यह चिट्ठी पढ़ रहा हूँ। उम्मीद है यह आपको सुभाष जी का अलग चेहरा दिखाएगी।
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