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ताज महल का टेंडर (नाटक) : अजय शुक्ला
नाटककार अजय शुक्ला ने वर्ष 1993 में 'ताज महल का टेंडर' व्यंग्य नाटक लिखा था। 1998 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) के रंगमंडल ने यह नाटक मंच पर प्रस्तुत कर थिएटर की दुनिया में हलचल मचा दी थी| रेलवे के एक अफसर अजय शुक्ल का लिखा यह नाटक भारतीय सामाजिक - राजनीतिक परिदृश्य में निरंतर चली आ रही एक भारी समस्या, भ्रष्टाचार पर आधारित है। यह हिंदी का ऐसा मौलिक नाटक है जिसने सफल मंचनों के नए कीर्तिमान गढ़े। आज यह अनेक नाटक-मंडलियों की प्रिय नाट्य-कृतियों में है। देश-विदेश की अनेक भाषाओं में इसका अनुवाद और मंचन हो चुका है, और हो रहा है। यह भ्रष्ट व्यवस्था पर व्यंग्य करनेवाला नाटक है, जिसके पात्र निम्नलिखित हैं|
शाहजहाँ : बादशाह
गुप्ताजी : पीडब्ल्यूडी के मुख्य अभियंता (चीफ इंजीनियर)
सुधीर : गुप्ताजी का पीए
भइयाजी : ठेकेदार
सेठी : विजिलेंस इंस्पेक्टर
शर्मा : प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी
चोपड़ा : अकौंट्स ऑफिसर
इनके अलावा अन्य सहायक पात्र हैं, जहानआरा, औरंगज़ेब, दारा शिकोह, नेता-1, नेता-2, नर्तक, दरबारी| नाटक में मुगल बादशाह शाहजहाँ पुराने जमाने के हैं, बाकी सभी पात्र वर्तमान समय के हैं, परंतु नाटककार के अनुसार इस नाटक में शाहजहाँ यह एकही काल्पनिक पात्र है, अन्य सभी वास्तविक हैं |
नाटककार ने एक ऐसी स्थिति का चित्रण किया है जहां मुगल सम्राट शाहजहाँ वर्तमान प्रशासन प्रणाली के साथ आज के समय में शासन कर रहे हैं और अपनी प्यारी पत्नी मुमताज की याद में ताजमहल का निर्माण करने का इरादा रखते हैं। इस कार्य को पीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियर गुप्ताजी को सौंपा जाता है| गुप्ता एक चतुर परंतु भ्रष्ट अधिकारी है जो नौकरशाही और लालफीताशाही के जाल में सम्राट को फँसाता है। इसके लिए ताजमहल कंस्ट्रक्शन कार्पोरेशन का गठन होता है। दारा शिकोह को कार्पोरेशन का चेयरमैन और नय्यर को एम. डी. अर्थात मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया जाता है| ताजमहल बनवाना बादशाह के लिए भावना का विषय है, पर गुप्ताजी जैसे भ्रष्ट चीफ इंजीनियर के लिए यह पैसा कमाने का मौका है, इसीलिए वे अपने पी. ए. सुधीर से कहते हैं, "इट्स अ हंड्रेड मिलियंज गेम"
चीफ इंजीनियर गुप्ताजी रिश्वत लेकर ताजमहल का कॉन्ट्रैक्ट ठेकेदार भय्याजी को देते हैं| परंतु अब तक यह निश्चित नहीं हुआ है, कि ताजमहल कहाँ बनाना है| तभी भय्याजी को ख़याल आता है कि जमना नदी किनारे उनके चाचाजी की एक जमीन है, जिसपर झुग्गी- झोंपड़ीवाले आकर बस गए हैं और हटने का नाम नहीं ले रहें हैं, और इसी वजह से कोई वह ज़मीन खरीदने को तैयार नहीं है| इसीलिए भय्याजी गुप्ताजी को प्रस्ताव देते हैं कि वह ज़मीन अगर ताजमहल बनवाने के लिए खरीदते हैं, तो चाचाजी उनकी अच्छी 'सेवा' करेंगे अर्थात रिश्वत देंगे| फिर उनकी ज़मीन खरीदी जाती है |
ताजमहल बनवाने के बहाने सब पैसा कमा रहे हैं| शाहजहाँ की भावनाओं की किसीको परवाह नहीं है, यमुना बचाओ आंदोलन के नेता, विजिलेंस इंस्पेक्टर और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अफसर शर्मा, अकौंट्स ऑफिसर चोपड़ा बहती गंगा में हाथ में धो लेते हैं। लाखों करोड़ों रुपया बहाने के बाद गुप्ता जी का घर, होटल और फार्म हाउस बन जाता है लेकिन ताजमहल नहीं बनता। हास्यास्पद नौकरशाही प्रक्रिया और भ्रष्टाचार के कारन ताजमहल का टेंडर नोटिस जारी करने में 25 साल लगते हैं। अधेड़ बादशाह बूढ़े होकर बिस्तर से लग जाते हैं। ताजमहल बनवाने का हुक्म देने के 25 वर्ष बाद ताजमहल का टेंडर निकलनेवाला है| भ्रष्ट अधिकारी विशेषकर गुप्ता तथा व्यवस्था के कारनही इतनी देर होती है, पर सुधीर और भय्याजी सारा श्रेय गुप्ता को देते हैं और कहते हैं की टेंडर बहुत जल्दी निकला| बादशाह सलामत को यह खुशखबरी देने के लिए जाते हैं, तब गुप्ता कहते हैं कि "देखिए हुज़ूर ताजमहल का टेंडर नोटिस, आज जारी हो गया|" लेकिन तब तक बादशाह का अंत हो चुका है|
गुप्ताजी तथा भय्याजी : भ्रष्ट चीफ इंजीनियर गुप्ताजी और ठेकेदार भय्याजी यह दोनों व्यक्ति नहीं, प्रवृत्ति हैं, जो लोगों के सपनों को तबाह कर उसपर अपने ताजमहल बनाते रहते हैं | बादशाह गुप्ताजी पर ताजमहल के निर्माण की जिम्मेदारी सौंपते हैं और सात दिनों के अंदर ताजमहल का नक्शा बनाने को कहते हैं, तब गुप्ताजी ठेकेदार भय्याजी और अपने पी. ए. सुधीर को साथ लेकर भ्रष्टाचार का खेल शुरू करते हैं| अभी ताजमहल बनवाने का काम शुरू भी नहीं हुआ और ठेकेदार भय्याजी को एडवांस रकम भी मिली है| ताजमहल कंस्ट्रक्शन कार्पोरेशन का गठन होता है। 150 इंजीनियरों और 1500 क्लर्कों की भर्ती होती है और वे सब मिलकर ताजमहल का नक्शा और एस्टीमेट बनाते हैं। भैयाजी अपने चाचा की यमुना किनारे पड़ी जमीन अनाप शनाप रेट में देते हैं, जिसमें गुप्ताजी को उनका हिस्सा मिल जाता है ।
ताजमहल की जमीन के पास ही नेता 2 की जमीन है और उस जमीन को वह बेचना चाहता है, पर झुग्गी झोंपड़ीवालो ने वहाँ कब्ज़ा जमा कर रखा है, इसलिए नहीं बेच पा रहा है| तब गुप्ताजी उस जमीन पर निर्वासितों के लिए कॉलोनी बनाने की झूठी योजना बनाकर सरकार की और से अधिक दाम में खरीदते हैं| इस व्यवहार में भी उन्हें कमिशन मिल जाता है| लाखों करोड़ों रुपया बहाने के बाद गुप्ता जी का घर, होटल और फार्म हाउस बन जाता है| इस तरह ताजमहल बनानेसे पहले करोड़ों रुपये खर्च हो जाते हैं| तब दरबारियों से मिलकर गुप्ताजी ताजमहल कॉर्पोरेशन को पब्लिक कंपनी बनाकर और उसके शेयर बेचकर पैसे जमा करते हैं| इस तरह गुप्ताजी बादशाह का खज़ाना और लोगों का पैसा लूटने का एक भी मौका नहीं छोड़ते|
इस तरह यह नाटक व्यंग्य द्वारा आज की भ्रष्ट व्यवस्था का पर्दाफ़ाश करता है| अंत में गुप्ताजी का संवाद है- "वक़्त गया बात गई, पर हम नहीं जाएँगे| फिर कोई ताजमहल का ख्वाब देखेगा, तब हम फिर बुलाये जाएँगे, तब ये फाइल फिर काम आएगी|" यह वाक्य सोचने को मज़बूर करता है, यही इस नाटक की सफलता है |
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