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पुण्यभूमि हिमांचल प्रदेश के मंडी जिले का ऐतिहासिक प्राचीन भूतनाथ शिव मंदिर...यह मंदिर हिमाच्छादित... अपनी प्राचीन भव्यता और दिव्यता के कारण शिवभक्तों और श्रद्धालुओं के विशेष आकर्षण का केंद्र है।
पौराणिक कथा
भक्तों पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव पर्वतराज की पुत्री माता पार्वती को विवाह के पश्चात विदा करवा कर ले जा रहे थ। उस समय भगवान शिव को संसार का ध्यान आया तो वे बरातियों के साथ ही, अपनी नई नवेली दुलहन को माता पार्वती को वहीं छोड़ कर तपस्या में लीन हो गए। बहुत समय तक शिव के वापस न आने पर, माता पार्वती करूण क्रंदन करने लगीं, उनके करूण क्रंदन को सुनकर बारात के पुरोहित आगे आए। उन्होंने भगवान शिव का आह्वान करने के लिए मंडप की स्थापना कारवाई। मंडप में प्रकट होकर भगवान शिव ने कहा कि उन्हें क्यों बुलाया गया है। इस पर पुरोहित ने कहा कि आपकी याद में कारण्डन करती करती माता पार्वती मूर्छित हो गई हैं। तभी से इस स्थान का नाम मंडप से मांडव्य और फिर मंडी पड़ा। यहां भोलेनाथ स्वयंभू शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए हैं। इसीलिए भगवान भूतनाथ को मंडी के अधिष्ठाता भी कहा जाता है।
मंदिर का इतिहास
भक्तों ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार राजा बाहु सेन से 19 वीं पीढ़ी में राजा अजबर सेन हुये है। जब 1527 ईसवी में मंडी शहर की स्थापना की गई थी तब मंडी के प्रथम राजा के रूप में अजबर सेन का राजतिलक किया गया। उस समय पहले मंडी एक दुर्गम और घना जंगल था। यहाँ गंधर्व लोग रहते थे। गन्धर्वों के अंतिम राजा गोकुल थे। सन 1527 में राजा अजबर सेन ने राजा गोकुल को मरवाकर इस सारे क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। इसी समय में राजा अजबर सेन ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण उस काल में बनवाया गया था जब रियासत की राजधानी को मंडी से भिउली में स्थानांतरित कर दिया गया था।
शिवलिंग प्राप्ति और मंदिर निर्माण
भक्तों एक रात को राजा अजबर सेन को भगवान शिव ने स्वप्न दिया कि इस घने जंगल में एक गाय खड़ी है और उसके स्तनों से स्वतः दूध की धारा निकल कर बह रही है, उस स्थान पर एक शिवलिंग है। अतः तत्क्षण उस स्थान से शिवलिंग को बाहर निकलवाओ और विधि विधान से मंदिर का निर्माण करो। स्वप्न के अनुसार राजा अजबर सेन ने वहां जाकर स्वयं ही वो दृश्य देखा तो भावविभोर हो गए। और उस स्थान की खुदाई करवाई तो खुदाई के दौरान वहाँ शिवलिंग मिला। उसी शिवलिंग को वहां प्रतिष्ठित कर शिखर शैली का भव्य मंदिर बनवा दिया। क्यूंकि वह स्वयं शिव भक्त थे।
मंडी छोटा काशी बना
भक्तों दूसरी ये है जनश्रुति के अनुसार “राजा अजबरसेन के उत्तराधिकारी राजा सिधसेन एकबार गए तो उन्होंने काशी जी का भव्य दृश्य देखा। उनके मन में भी मंडी को छोटा काशी का स्वरुप देने का मन बना। मंडी में पहले त्रिलोकनाथ और भूतनाथ मंदिर के गर्भगृह ही केवल शिखर शैली के बने हुए थे। राजा सिद्ध सेन ने त्रिलोक नाथ के साथ भूतनाथ मंदिर के साथ सभागार बनवाया। जो बड़े बड़े विशालकाय स्तंभों पर टिका हुआ है।
भक्तों भूतनाथ मंदिर में प्रतिष्ठित भगवान शिव के प्रति प्रगाढ़ आस्था है कहा जाता है कि इस मंदिर आकर जिसने भी सच्चे मन और सम्पूर्ण श्रद्धा भक्ति से भगवान शिव का पूजन अभिषेक किया। भगवान भूतनाथ की कृपा से उसके मनोरथ अवश्य पूर्ण होते हैं।
भगवान शिव की मक्खन सेवा
भक्तों मंडी भूतनाथ मंदिर की। अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव से एक माह पूर्व से बाबा भूतनाथ मंदिर में प्राचीन समय से मक्खन चढ़ाने की परंपरा को कायम रखते हुए हर रोज अलग-अलग रूपों का शृंगार किया जाता है।
विश्वास
भक्तों भूतनाथ मंदिर से जुड़ी एक खास परंपरा कहें या लोगों का विश्वास! वो ये है कि जिस किसी की संतान पैदा होने के बाद मर जाती थी या जीवित नही रहती थी। वह अपने शिशु को भूत के नाम से, भगवान् भूतनाथ में चढ़ा देते हैं। भगवान भोलेनाथ की कृपा से वह संतान मरती नही बल्कि एक लंबा जीवन जीती है।
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Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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