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कवि-कर्म की सार्थकता युगधर्म के निर्वाह से तय होती है। लोक-केन्द्रित यह कविता हर उस समर्थ कवि व कलाकार को सादर समर्पित है जिसकी मुखर आवाज़ लाखों-करोड़ों लोगों की प्रतिनिधि मानी जाती है।
राजा अन्धा हो जाए तो, सेवा धन्धा हो जाए तो
सच दिखलाने वाला खम्भा छवि प्रबंधा हो जाए तो
युग कवि मत समझो ख़ुद को तुम निर्बल या कमजोर
वाणी में भरकर जनता के संकल्पों का ज़ोर
चौराहों पर अभय पुकारो चोर, चोर, चोर
वे क्या बोलेंगे जिनपर है कर्जा इन दरबारों का
वे क्या बोलेंगे जिनपर है हिस्सा इन बटमारों का
वे क्या बोलेंगे जिनपर है पट्टा इन सरकारों का
तुम्हीं बोलो विदुर अकेले इन्द्रप्रस्थ में क्योंकि अब
धृतराष्ट्रों की आँखों पर है चश्मा साहूकारों का
गूँजे कवि की ललकारों से छोर छोर छोर
चौराहों पर अभय पुकारो चोर, चोर, चोर
दलदल के बंधक दिवालियों से कैसी आशा करना
विज्ञापनजीवी सवालियों से कैसी आशा करना
सदनों में लड़ते मवालियों से कैसी आशा करना
तुम गाओ निर्भीक तराना जिसकी बस धुन को सुनकर
सौ करोड़ आँखों की दहके कोर कोर कोर
चौराहों पर अभय पुकारो चोर, चोर, चोर
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