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किसी भी भगवान को पूजें पर इंसान जरूर बनें रहें
🔆 हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार काल को चार चरणों में बांटा गया है - सत युग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलि युग।
🔆 सतयुग में मनुष्य में देव प्रवृत्ति की प्रधानता थी और राक्षस उनसे दूर ही रहते थे। त्रेता युग में मानव और राक्षसों में युद्ध होने लगे थे। द्वापर युग में एक ही परिवार में मानव और दानव प्रकृति के सदस्यों में संघर्ष देखने को मिला और आज कलयुग में एक ही मनुष्य में मानवी और दानवी प्रकृति पाई जाती है।
🔆 हम भले भगवान राम को मानें, कृष्ण को मानें, बुद्ध को मानें या महावीर को लेकिन हमें यह ध्यान रखना है कि हमारे भीतर की इंसानियत खत्म ना हो जाए, हमारे मानवीय गुण खत्म ना हो जाएं। आज के दौर में हर मनुष्य में राक्षसी प्रवृत्तियां विद्यमान हैं लेकिन इन प्रवृत्तियों को खुद पर हावी नहीं होने देना है बल्कि इंसानियत को जिंदा रखना ही हमारा दायित्व है।
🔆 यदि हम सच्चे गुरु के प्रति श्रद्धा को अपना लें तो अपनी इंसानियत को जीवित रख सकते हैं। जैन साधु सही मायने में पूर्ण समर्पण युक्त होते हैं और उनका त्याग सच्चा होता है। उनके मन में तनिक भी स्वार्थ नहीं होता और वे परोपकार की भावना से ओतप्रोत होते हैं। ऐसे गुरुओं को हमें हृदय से अपनाना चाहिए ताकि हमारा कल्याण हो सके।
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